प्रश्न 1: नागरिकता का राजनीतिक विज्ञान में क्या अर्थ है?
उत्तर:
राजनीतिक विज्ञान में नागरिकता एक व्यक्ति के किसी विशेष राष्ट्र या राज्य का सदस्य होने की स्थिति को संदर्भित करती है, जिसमें विशिष्ट अधिकार और कर्तव्य होते हैं। यह एक कानूनी संबंध होता है जो एक व्यक्ति और राज्य के बीच होता है, जो व्यक्तियों को अधिकारों का एक सेट प्रदान करता है और उन्हें उस राज्य के कानूनों का पालन करने की जिम्मेदारी देता है। नागरिकता व्यक्तियों को मतदान, काम करने, देश में निवास करने और इसके संसाधनों तक पहुँचने का अधिकार देती है। इसके अलावा, यह सुरक्षा और जिम्मेदारियाँ प्रदान करती है, जैसे कि देश के कानूनों का पालन करना, इसके कल्याण में योगदान देना और आवश्यकता पड़ने पर सेना में सेवा करना। नागरिकता राजनीतिक भागीदारी, सामाजिक समाकलन और राष्ट्रीय पहचान को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 2: भारत में नागरिकता प्राप्त करने के विभिन्न तरीके क्या हैं?
उत्तर:
भारत में, नागरिकता प्राप्त करने के कई तरीके हैं, जैसा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में निर्धारित किया गया है। भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के तरीके निम्नलिखित हैं:
- जन्म द्वारा: एक व्यक्ति को भारत में जन्मे जाने पर भारतीय नागरिक माना जाता है, कुछ शर्तों के अधीन। उदाहरण के लिए, यदि व्यक्ति के माता-पिता राज्य के शत्रु नहीं हैं या विदेशी राजनयिक नहीं हैं, तो वे भारतीय नागरिकता के पात्र होते हैं।
- वंशज द्वारा: एक व्यक्ति जो भारत के बाहर जन्मा है, भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकता है, यदि जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो।
- पंजीकरण द्वारा: कुछ व्यक्तियों, जैसे भारतीय मूल के लोग या भारतीय नागरिक से विवाह करने वाले लोग, भारतीय सरकार के साथ पंजीकरण के लिए आवेदन करके नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
- प्राकृतिककरण द्वारा: विदेशी जो भारत में एक निर्दिष्ट अवधि तक निवास कर चुके हैं और अन्य मानदंडों को पूरा करते हैं, जैसे भाषाओं में प्रवीणता और भारतीय कानून का पालन, नागरिकता के लिए प्राकृतिककरण के द्वारा आवेदन कर सकते हैं।
- क्षेत्र के समावेश द्वारा: यदि भारत कोई नया क्षेत्र प्राप्त करता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है, कानूनों के अनुसार।
ये तरीके यह सुनिश्चित करते हैं कि नागरिकता भारत से जुड़े विभिन्न व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हो।
प्रश्न 3: द्वैध नागरिकता का क्या महत्व है, और भारत में इसे क्यों अनुमति नहीं है?
उत्तर:
द्वैध नागरिकता का अर्थ है एक व्यक्ति का एक साथ दो देशों का नागरिक होना। जबकि कुछ देशों में द्वैध नागरिकता की अनुमति होती है, भारत में इसे अनुमति नहीं है। द्वैध नागरिकता का महत्व इस तथ्य में है कि यह व्यक्तियों को दो देशों में नागरिकता के अधिकार और विशेषताएँ प्राप्त करने की सुविधा देती है। हालांकि, द्वैध नागरिकता से राष्ट्रीय सुरक्षा, कानूनी अधिकारक्षेत्र और दो सरकारों के प्रति कर्तव्यों के बीच टकराव हो सकता है।
भारत में द्वैध नागरिकता की अनुमति नहीं होने के कई कारण हैं:
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता: द्वैध नागरिकता की अनुमति देने से व्यक्तियों की वफादारी दो देशों के बीच बंट सकती है, जिससे राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव पड़ सकता है।
- कानूनी जटिलताएँ: द्वैध नागरिकता से कराधान, सैन्य सेवा या कूटनीतिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- राजनीतिक और सामाजिक एकजुटता: भारत का संविधान देश में एकता और belonging की भावना को बढ़ावा देता है। द्वैध नागरिकता एक एकल, एकीकृत राष्ट्रीय पहचान के सिद्धांत को कमजोर कर सकती है।
भारत एकल नागरिकता के सिद्धांत का पालन करता है, जिसमें एक व्यक्ति केवल भारत का नागरिक हो सकता है, भले ही वह अन्य देशों से जुड़ा हो।
प्रश्न 4: भारतीय कानून के संदर्भ में “गैर-नागरिकता” की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय कानून के संदर्भ में, गैर-नागरिकता उन व्यक्तियों को संदर्भित करती है जो भारतीय नागरिकता नहीं रखते हैं लेकिन फिर भी भारत में निवास कर सकते हैं। गैर-नागरिकता की अवधारणा महत्वपूर्ण है क्योंकि गैर-नागरिकों को, जबकि वे कुछ मानवाधिकारों का आनंद लेते हैं, भारतीय नागरिकों के समान अधिकार नहीं होते हैं। भारतीय संविधान और कानून नागरिकों और गैर-नागरिकों के बीच राजनीतिक, सामाजिक और नागरिक अधिकारों के संदर्भ में अंतर करते हैं।
गैर-नागरिकों में शामिल हो सकते हैं:
- विदेशी नागरिक: वे लोग जो भारत के नागरिक नहीं हैं लेकिन काम, अध्ययन या व्यवसाय जैसे विभिन्न कारणों से भारत में रह रहे हैं। उन्हें भारत में मतदान या चुनावों में भाग लेने का अधिकार नहीं होता।
- शरणार्थी: वे व्यक्ति जो उत्पीड़न से बचने के लिए अपने देश से भागकर भारत में शरण लेते हैं। इन्हें अस्थायी शरण दी जा सकती है लेकिन इन्हें नागरिकों के समान अधिकार नहीं मिलते।
- निर्वासन: वे लोग जिनके पास कोई राष्ट्रीयता नहीं होती और जिन्हें किसी देश का नागरिक नहीं माना जाता। भारत निर्वासन व्यक्तियों को कुछ सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन उन्हें पूर्ण नागरिकता अधिकार नहीं मिलते।
हालाँकि गैर-नागरिकों को नागरिकों जितनी विशेषताएँ नहीं मिलतीं, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय कानून और भारतीय संविधान के तहत बुनियादी मानवाधिकारों से सुरक्षा प्राप्त होती है।
प्रश्न 5: भारतीय नागरिकों के अधिकार संविधान के तहत क्या हैं?
उत्तर:
भारतीय नागरिकों को ऐसे अधिकार प्राप्त हैं जो संविधान के तहत संरक्षित हैं। इनमें शामिल हैं:
- मूलभूत अधिकार (संविधान का भाग III): ये वे बुनियादी अधिकार हैं जिनका हर नागरिक हकदार है, जिनमें शामिल हैं:
- समानता का अधिकार (धारा 14-18): धर्म, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है।
- स्वतंत्रता का अधिकार (धारा 19-22): अभिव्यक्ति, सभा, संघ, आवागमन, और निवास की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- शोषण के खिलाफ अधिकार (धारा 23-24): मानव तस्करी, मजबूर श्रम और बाल श्रम को निषिद्ध करता है।
- धर्मनिरपेक्षता का अधिकार (धारा 25-28): धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है और किसी भी धर्म का पालन, प्रचार और पालन करने का अधिकार प्रदान करता है।
- संस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (धारा 29-30): अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति बनाए रखने और शैक्षिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार प्रदान करता है।
- संविधानिक उपचार का अधिकार (धारा 32): मूलभूत अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय से याचिका करने का अधिकार प्रदान करता है।
- मतदान का अधिकार: 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को चुनावों में मतदान करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार है।
- चुनावों में भाग लेने का अधिकार: भारतीय नागरिकों को राजनीतिक पद के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार है, यदि वे कुछ शर्तों को पूरा करते हैं।
- सूचना का अधिकार: नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है (सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत)।
- भारत के किसी भी हिस्से में कार्य करने और निवास करने का अधिकार: भारतीय नागरिक किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से निवास और कार्य कर सकते हैं।
ये अधिकार नागरिकों को शोषण, भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करते हैं और उन्हें देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने का अवसर देते हैं।
प्रश्न 6: भारतीय नागरिकता खोने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
भारतीय नागरिकता को कई तरीकों से खोया जा सकता है, जैसा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में निर्धारित किया गया है। इनमें शामिल हैं:
- त्याग द्वारा: एक भारतीय नागरिक जो स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त करता है, स्वचालित रूप से अपनी भारतीय नागरिकता खो देता है, क्योंकि भारत द्वैध नागरिकता की अनुमति नहीं देता। यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है।
- समाप्ति द्वारा: यदि एक भारतीय नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त करता है, तो उनकी भारतीय नागरिकता सरकार द्वारा समाप्त की जा सकती है। यह सामान्यत: तब होता है जब व्यक्ति स्पष्ट रूप से भारतीय नागरिकता का त्याग करता है या विदेशी नागरिकता प्राप्त करता है।
- वंचन द्वारा: सरकार किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता को उस स्थिति में समाप्त कर सकती है, यदि उन्होंने इसे धोखाधड़ी या तथ्य की गलत प्रस्तुति द्वारा प्राप्त किया हो। यदि कोई व्यक्ति विदेशी सेना में शामिल होता है या युद्धकाल में शत्रु के पक्ष में सेवा करता है, तो भी सरकार उनकी नागरिकता रद्द कर सकती है।
इन उपायों से यह सुनिश्चित होता है कि नागरिकता संरक्षित रहती है और व्यक्ति देशों में नागरिकता रखने के नियमों का उल्लंघन नहीं करते हैं।
प्रश्न 7: लोकतंत्र में नागरिकता का क्या महत्व है?
उत्तर:
लोकतंत्र में नागरिकता का महत्वपूर्ण योगदान होता है, क्योंकि यह व्यक्तियों को राज्य से कानूनी स्थिति और अधिकार प्रदान करती है जो उन्हें देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रक्रियाओं में पूरी तरह से भाग लेने के लिए सक्षम बनाती है। लोकतंत्र में नागरिकता का महत्व निम्नलिखित है:
- राजनीतिक भागीदारी: नागरिकता मतदान करने, चुनाव लड़ने और सरकार को प्रभावित करने का अधिकार देती है। यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता अंततः जनता के पास हो और सरकार की क्रियाएँ नागरिकों की इच्छाओं के अनुरूप हों।
- कानूनी सुरक्षा: नागरिकों को मनमानी कार्रवाई से कानूनी सुरक्षा प्राप्त होती है और वे न्याय प्रणाली के माध्यम से अपनी रक्षा कर सकते हैं। वे अपनी अधिकारों के उल्लंघन पर न्याय के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- सामाजिक समाकलन: नागरिकता राज्य के भीतर पहचान और संबंध की भावना उत्पन्न करती है, यह सुनिश्चित करती है कि व्यक्ति बहिष्कृत या हाशिए पर न हों।
- नागरिक जिम्मेदारी का प्रोत्साहन: नागरिकता के साथ कुछ जिम्मेदारियाँ भी होती हैं, जैसे कानूनों का पालन करना, कर चुकाना और राष्ट्र के कल्याण में योगदान देना।
- राष्ट्रीय एकता: नागरिकता व्यक्तियों को एक सामान्य पहचान स्थापित करने में मदद करती है और राष्ट्र पर साझा अधिकार और जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न करती है।
सारांश में, नागरिकता लोकतांत्रिक व्यवस्था के कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्यक्तियों को शासन में भाग लेने और कानूनी अधिकारों का आनंद लेने की शक्ति देती है।
प्रश्न 8: भारत में “विदेशी” की अवधारणा और इससे संबंधित कानूनी प्रावधानों की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में, “विदेशी” शब्द उन व्यक्तियों को संदर्भित करता है जो भारतीय नागरिक नहीं हैं। विदेशियों से संबंधित कानूनी प्रावधान विदेशी अधिनियम, 1946 और अन्य विभिन्न कानूनों द्वारा शासित होते हैं। विदेशियों को भारत में प्रवेश, निवास, और प्रस्थान से संबंधित विशिष्ट नियमों के अधीन रखा जाता है, और उनके अधिकार और कर्तव्य भारतीय नागरिकों से अलग होते हैं। कुछ महत्वपूर्ण पहलु हैं:
- प्रवेश और निवास: विदेशियों को भारत में विभिन्न उद्देश्यों के लिए वीजा प्राप्त करना होता है, जैसे पर्यटन, व्यवसाय, रोजगार या शिक्षा। सरकार उनके निवास की अवधि और शर्तों को नियंत्रित कर सकती है।
- विदेशियों के अधिकार: जबकि विदेशियों के अधिकार भारतीय नागरिकों से सीमित होते हैं, वे फिर भी संविधान के तहत कुछ बुनियादी मानवाधिकारों का आनंद लेते हैं। उदाहरण के लिए, उन्हें जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (धारा 21) प्राप्त होता है, लेकिन उन्हें मतदान या राजनीतिक पद धारण करने का अधिकार नहीं होता।
- निर्वासन: यदि कोई विदेशी अपने वीजा की अवधि समाप्त कर देता है या प्रवास शर्तों का उल्लंघन करता है, तो सरकार उसे निर्वासित कर सकती है।
- विदेशी नागरिकों और मूलभूत अधिकारों: विदेशियों को सभी मूलभूत अधिकारों का अधिकार नहीं होता जो नागरिकों को मिलते हैं। उदाहरण के लिए, मतदान का अधिकार, चुनाव में भाग लेने का अधिकार और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए विशेष उपाय नागरिकों तक सीमित होते हैं।
विदेशियों से संबंधित कानूनी ढांचा यह सुनिश्चित करता है कि भारत के सीमाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा की सुरक्षा हो, साथ ही बुनियादी मानवाधिकारों का सम्मान भी किया जाए।
प्रश्न 9: “जन्म द्वारा नागरिकता” और “वंशज द्वारा नागरिकता” के बीच अंतर को समझाइए।
उत्तर:
भारत में, जन्म द्वारा नागरिकता और वंशज द्वारा नागरिकता दो अलग-अलग तरीके हैं जिनसे एक व्यक्ति भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकता है। इन दोनों के बीच मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:
- जन्म द्वारा नागरिकता:
- एक व्यक्ति को भारत में जन्म लेने पर भारतीय नागरिकता स्वतः मिल जाती है, बशर्ते कि माता-पिता में से कोई विदेशी राजनयिक या शत्रु न हो।
- व्यक्ति को भारतीय नागरिकता के लिए भारतीय जन्म होना आवश्यक होता है, न कि भारतीय माता-पिता होना।
- यह तरीका यह सुनिश्चित करता है कि भारत में जन्मे व्यक्तियों को नागरिकता का अधिकार मिलेगा, बशर्ते वे कुछ विशिष्ट शर्तों को पूरा करें।
- वंशज द्वारा नागरिकता:
- एक व्यक्ति जो भारत के बाहर जन्मा है, भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकता है, यदि जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो।
- इस स्थिति में, व्यक्ति को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन करना होता है, और यह नागरिकता माता-पिता की राष्ट्रीयता पर आधारित होती है, जन्म स्थान पर नहीं।
- यदि दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक हैं, तो बच्चा स्वचालित रूप से वंशज द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्त करेगा, कानून द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन।
इस प्रकार, दोनों तरीके भारतीय माता-पिता या भारतीय जन्म से जुड़े होते हैं, लेकिन मुख्य अंतर यह है कि व्यक्ति भारत में जन्मा हो या बाहर।
प्रश्न 10: नागरिकता की अवधारणा और राष्ट्रीय पहचान के बीच संबंध को समझाइए।
उत्तर:
नागरिकता की अवधारणा राष्ट्रीय पहचान से गहरे तरीके से जुड़ी होती है, क्योंकि नागरिकता व्यक्ति को कानूनी स्थिति और राज्य से संबंध प्रदान करती है, जो उनकी संबंधितता और पहचान की भावना में योगदान करती है। नागरिकता व्यक्तिगत अधिकारों, कर्तव्यों और राष्ट्र में भागीदारी के रूप में परिभाषित करती है। यह एक साझी राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अनुभवों का एक चिन्ह होती है, जो नागरिकों के बीच एक सामूहिक एकता और गर्व की भावना उत्पन्न करती है।
राष्ट्रीय पहचान नागरिकता के विचार से मजबूत होती है, क्योंकि यह एक व्यक्ति और राज्य के बीच रिश्ते को दर्शाती है, जो आपसी अधिकारों और जिम्मेदारियों पर आधारित होता है। एक मजबूत राष्ट्रीय पहचान नागरिकों को जोड़कर समाज में सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती है।
प्रश्न 11: शरणार्थियों को नागरिकता देने में भारत को कौन-कौन सी चुनौतियाँ सामना करनी पड़ती हैं?
उत्तर:
भारत को शरणार्थियों को नागरिकता देने में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो मुख्य रूप से राजनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा संबंधित चिंताओं से जुड़ी होती हैं। कुछ प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:
- सुरक्षा संबंधित चिंताएँ: शरणार्थी अक्सर संघर्ष क्षेत्रों से आते हैं और इनमें ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं जो देश के लिए सुरक्षा खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। सरकार को शरणार्थियों की पृष्ठभूमि का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना पड़ता है, ताकि उन व्यक्तियों को नागरिकता न दी जाए जिनका आतंकवादी समूहों या विद्रोहियों से संबंध हो सकता है।
- कानूनी और प्रक्रियागत जटिलता: भारत में शरणार्थियों के लिए एक समग्र शरणार्थी कानून नहीं है। नागरिकता अधिनियम और अन्य संबंधित कानूनों में शरणार्थियों की स्थिति को लेकर अस्पष्टताएँ हैं, जिससे यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि कौन नागरिकता के लिए योग्य है।
- आर्थिक बोझ: शरणार्थियों को नागरिकता देने से देश पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ सकता है, खासकर सामाजिक कल्याण, रोजगार और संसाधन वितरण के संदर्भ में। यह विशेष रूप से आर्थिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- सामाजिक एकीकरण: शरणार्थी, विशेषकर बांगलादेश या म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से आने वाले लोग, भारतीय समाज में सांस्कृतिक, भाषाई या धार्मिक अंतर के कारण एकीकृत होने में समस्याओं का सामना कर सकते हैं। इससे स्थानीय समुदायों के साथ तनाव और संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं।
- राजनीतिक संवेदनशीलता: शरणार्थियों को नागरिकता देना अक्सर एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा होता है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों या समुदायों के शरणार्थियों को नागरिकता देने से यह प्रतीत हो सकता है कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है या इसे चुनावी अभियानों में राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
इन चुनौतियों के बावजूद, भारत ने शरणार्थियों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए कदम उठाए हैं, विशेष रूप से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांगलादेश से आने वाले अल्पसंख्यकों के लिए, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत।
प्रश्न 12: नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 का क्या महत्व है?
उत्तर:
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019, 1955 के नागरिकता अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संशोधन था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करना था। CAA का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
- उद्देश्य और इरादा: CAA का मुख्य उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए शरणार्थियों—हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई—को नागरिकता प्रदान करना था, ताकि उन्हें सुरक्षा और पुनर्वास सुनिश्चित किया जा सके।
- विवाद: यह अधिनियम विशेष रूप से मुस्लिम शरणार्थियों को बाहर करता है, जिससे धार्मिक आधार पर भेदभाव के आरोप लगे। आलोचकों का कहना है कि यह भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
- संवैधानिक बहस: CAA ने नागरिकता और धर्म के बीच संबंध पर संवैधानिक प्रश्न उठाए हैं। आलोचक कहते हैं कि यह समानता के अधिकार (धारा 14) का उल्लंघन करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिक कानून के सामने समान हों।
- नागरिकता प्रक्रिया पर प्रभाव: यह अधिनियम कुछ धार्मिक समुदायों को नागरिकता प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया को तेज करता है, शरणार्थियों के लिए प्राकृतिककरण के समय को 12 साल से घटाकर 6 साल कर देता है। इसने भारतीय पहचान और विभिन्न धार्मिक समुदायों के समावेश पर बहस को बढ़ावा दिया।
- धर्मनिरपेक्षता पर प्रभाव: CAA के मुस्लिमों को बाहर करने से यह बहस उठी है कि क्या यह भारतीय राज्य की धर्मनिरपेक्ष संरचना को चुनौती देता है, क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करना होता है।
CAA अभी भी भारत में एक अत्यधिक विवादास्पद और विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है, और इसका पूर्ण प्रभाव अभी भी देखा जाना बाकी है।
प्रश्न 13: नागरिकता बहस में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की भूमिका क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) भारत के सभी कानूनी नागरिकों का एक रजिस्टर है, जिसका उद्देश्य असम राज्य में अवैध आप्रवासियों की पहचान करना है। NRC की नागरिकता बहस में महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि यह आप्रवासन, नागरिकता और राष्ट्रीय पहचान के मुद्दों से जुड़ा हुआ है। NRC का महत्व निम्नलिखित है:
- उद्देश्य और निर्माण: NRC को असम में राज्य के कानूनी नागरिकों की पहचान करने के लिए बनाया गया था, खासकर असम आंदोलन (1979-1985) के बाद, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से बांगलादेश से आए अवैध आप्रवासियों की पहचान और निर्वासन था। NRC अभ्यास 2019 में किया गया, जिसके परिणामस्वरूप मुख्य रूप से बांगलादेशी भाषी मुसलमानों को बाहर किया गया।
- बाहर किए जाने को लेकर विवाद: अंतिम NRC सूची से लगभग 19 लाख (1.9 मिलियन) व्यक्तियों को बाहर करने से उनके अधिकारों को लेकर चिंता उत्पन्न हुई, जिनमें से कई असम में पीढ़ियों से रह रहे थे। इस बात का व्यापक डर था कि उन्हें निराधार घोषित किया जा सकता है या उन्हें निरोध केंद्रों में भेजा जा सकता है।
- CAA के साथ संबंध: NRC अभ्यास, विशेषकर असम में, जब इसे नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 से जोड़ा गया तो यह बहुत विवादास्पद हो गया। जबकि CAA ने पड़ोसी देशों से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया, यह डर था कि NRC से बाहर किए गए मुस्लिमों को नागरिकता प्रक्रिया में भेदभाव का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि वे CAA से लाभान्वित नहीं होंगे।
- राष्ट्रीय पहचान पर प्रभाव: NRC ने भारतीय पहचान की परिभाषा पर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं, खासकर यह कि कोई अपनी नागरिकता कैसे साबित करता है। नागरिकता साबित करने की जटिल और कागजी प्रक्रिया से यह डर था कि कई वैध भारतीय नागरिक, विशेषकर हाशिए पर स्थित समुदायों को रजिस्टर से बाहर किया जा सकता है।
- कानूनी और सामाजिक परिणाम: NRC और इसके संभावित CAA से संबंध ने बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा, विशेषकर नागरिकता के अधिकार और उन हाशिए पर स्थित समूहों के संरक्षण पर बहसों को जन्म दिया, जिनके लिए आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करना मुश्किल हो सकता है।
NRC मुद्दा भारत में नागरिकता, राष्ट्रीय सुरक्षा और धार्मिक पहचान पर चल रही बहस में एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया है।
प्रश्न 14: भारत में नागरिकता के कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ क्या हैं?
उत्तर:
भारत में नागरिकता न केवल अधिकार प्रदान करती है, बल्कि भारतीय संविधान के भाग IV-A के तहत नागरिकों पर कुछ कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ भी हैं। ये कर्तव्य राष्ट्रीय एकता, अखंडता और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निर्धारित किए गए हैं। अनुच्छेद 51A के तहत निर्धारित बुनियादी कर्तव्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- संविधान का सम्मान: नागरिकों को भारतीय संविधान का सम्मान करना और इसके सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए, जिसमें राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गीत का सम्मान करना भी शामिल है।
- सामाजिक सौहार्द का प्रचार: नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे भारत के सभी लोगों के बीच सामूहिक भाईचारे की भावना और एकता को बढ़ावा दें, जो धार्मिक, भाषाई, क्षेत्रीय और वर्गीय विविधताओं से ऊपर हो।
कानून का पालन: यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह देश के कानूनों का पालन करे और विधि के शासन को बनाए रखे।
पर्यावरण के प्रति कर्तव्य: नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करें, जिसमें जंगल, झीलें, नदियाँ और वन्यजीव शामिल हैं, और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें और हिंसा से बचें।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार: नागरिकों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और सुधार की भावना को बढ़ावा देना चाहिए।
विविधता का सम्मान: नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे विविधता और भिन्नताओं के प्रति सहिष्णुता की भावना को बढ़ावा दें और सामाजिक अन्याय या भेदभाव के किसी भी रूप से बचें।
ये कर्तव्य जिम्मेदार नागरिकता के महत्व को रेखांकित करते हैं, जो अधिकारों का आनंद लेने के साथ-साथ राष्ट्र की स्थिरता और प्रगति में योगदान करते हैं।
प्रश्न 15: भारत में नागरिकता सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में क्या भूमिका निभाती है?
उत्तर:
भारत में नागरिकता सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह व्यक्तियों को उनके अधिकारों तक पहुँचने और समाज के कल्याण में भाग लेने का कानूनी ढांचा प्रदान करती है। नागरिकता और सामाजिक न्याय के बीच संबंध को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
समान अधिकारों तक पहुँच: नागरिकता बुनियादी अधिकारों की गारंटी देती है, जिसमें समानता का अधिकार (धारा 14) शामिल है, जो यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों के साथ कानून के सामने समान व्यवहार हो, चाहे उनका जाति, धर्म, लिंग या कोई अन्य भेदभाव हो। ये अधिकार समाज में भेदभाव को समाप्त करने और निष्पक्षता को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखते हैं।
सकारात्मक कार्य: नागरिकता समुदायों को, जैसे अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) और अन्य पिछड़ी जातियों (OBCs) के व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण प्राप्त करने का अवसर देती है। यह ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित समूहों के उत्थान के लिए आवश्यक है।
कानूनी सुरक्षा: नागरिकता भेदभाव और शोषण से सुरक्षा प्रदान करती है। ऐसे कानून जैसे कि नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955, और अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989, लागू हैं, जो वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें अन्याय का सामना न करना पड़े।
सामाजिक कल्याण का अधिकार: नागरिकों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच प्राप्त होती है, जो गरीबों, वृद्धों, महिलाओं और बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। इनमें स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आर्थिक अवसर शामिल हैं, जो सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं।
राजनीतिक भागीदारी: नागरिकता व्यक्तियों को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार देती है, जैसे कि मतदान, संघों का गठन और नागरिक समाज में भागीदारी। राजनीतिक जीवन में सक्रिय भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि वंचित समुदायों की आवाजें सुनी जाएं और उनकी आवश्यकताओं का समाधान किया जाए।
इस प्रकार, नागरिकता समानता, न्याय और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक साधन बनती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी नागरिकों को, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, बेहतर जीवन के लिए अवसर और संसाधन मिल सकें।
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