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CBSE कक्षा 11 राजनीतिक विज्ञान अतिरिक्त प्रश्न उत्तर – अध्याय 7: संघवाद

प्रश्न 1: संघवाद क्या है? संघीय प्रणाली की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा करें।

उत्तर:
संघवाद एक शासन प्रणाली है, जिसमें दो स्तरों के सरकार होते हैं, अर्थात केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें, जो शक्ति और जिम्मेदारियों को साझा करती हैं। इस प्रणाली में, प्रत्येक स्तर को कुछ क्षेत्रों में अपनी स्वायत्तता और अधिकार होता है। संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. दो स्तर की सरकार: संघीय प्रणाली में, शक्ति केंद्रीय (या राष्ट्रीय) सरकार और राज्य (या प्रांतीय) सरकारों के बीच बाँटी जाती है।
  2. लिखित संविधान: संघीय प्रणाली में आमतौर पर एक लिखित संविधान होता है जो प्रत्येक स्तर की सरकार की शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
  3. शक्तियों का विभाजन: शक्तियाँ केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच सूचीबद्ध की जाती हैं—संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची (भारत के मामले में)।
  4. संविधान की सर्वोच्चता: संविधान सर्वोच्च कानून है, और कोई भी कानून जो इसके खिलाफ होगा, अवैध होगा।
  5. स्वतंत्र न्यायपालिका: न्यायपालिका संविधान का व्याख्या करती है और सरकारों के बीच विवादों को हल करती है।
  6. द्व chambers विधायिका: कुछ संघीय प्रणालियों में द्व chambers विधायिका होती है, जिसमें दोनों राज्यों और केंद्र का प्रतिनिधित्व होता है (जैसे भारत संसद में राज्यसभा और लोकसभा)।

प्रश्न 2: संघीय और एकात्मक शासन प्रणाली के बीच अंतर क्या हैं?

उत्तर:
संघीय और एकात्मक प्रणाली के बीच अंतर निम्नलिखित हैं:

  1. शक्ति का विभाजन:
    • संघीय प्रणाली: शक्ति केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच साझा की जाती है।
    • एकात्मक प्रणाली: केंद्रीय सरकार के पास सभी शक्ति होती है, और राज्य या प्रांत, यदि होते हैं, तो उनकी शक्ति केवल केंद्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर करती है।
  2. स्वायत्तता:
    • संघीय प्रणाली: राज्यों के पास स्वायत्तता होती है और वे कुछ क्षेत्रों में अपने स्वयं के कानून बना सकते हैं।
    • एकात्मक प्रणाली: उप-राष्ट्रीय इकाइयों (राज्यों) के पास सीमित या कोई शक्ति नहीं होती और उन्हें केंद्रीय सरकार के कानूनों का पालन करना पड़ता है।
  3. संविधानिक स्थिति:
    • संघीय प्रणाली: संघीय प्रणाली एक लिखित संविधान के माध्यम से स्थापित होती है, जो शक्तियों का विभाजन करती है।
    • एकात्मक प्रणाली: शक्ति का विभाजन स्पष्ट नहीं होता; यह परंपरा या कानून पर निर्भर करता है।
  4. लचीलापन:
    • संघीय प्रणाली: शक्ति-शेयरिंग व्यवस्था को बदलने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होती है।
    • एकात्मक प्रणाली: केंद्रीय सरकार उप-राष्ट्रीय इकाइयों की शक्तियों को बिना किसी प्रमुख संविधानिक बदलाव के बदल सकती है।

प्रश्न 3: भारतीय संविधान की संघीय संरचना को समझाइए।

उत्तर:
भारतीय संविधान एक अर्ध-संघीय संरचना स्थापित करता है, जिसमें संघवाद और एकात्मकता दोनों की विशेषताएँ शामिल हैं। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. शक्तियों का विभाजन: संविधान के माध्यम से संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों के माध्यम से किया गया है:
    • संघ सूची: विषय जिन पर केवल केंद्रीय सरकार कानून बना सकती है।
    • राज्य सूची: विषय जिन पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
    • समवर्ती सूची: विषय जिन पर दोनों, केंद्र और राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं, लेकिन यदि दोनों के बीच टकराव होता है तो केंद्रीय कानून प्रभावी रहेगा।
  2. एकल संविधान: भारत में एक ही संविधान है जो केंद्र और राज्यों दोनों पर लागू होता है।
  3. संघ की सर्वोच्चता: केंद्र सरकार के पास अधिक शक्तियाँ होती हैं, और राज्यों की स्वायत्तता सीमित होती है। केंद्रीय सरकार राज्य विधानसभाओं को भंग कर सकती है और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है।
  4. स्वतंत्र न्यायपालिका: न्यायपालिका स्वतंत्र है और यह संघ और राज्यों के बीच विवादों को हल करती है, ताकि शक्तियों का विभाजन सही तरीके से बना रहे।

प्रश्न 4: भारतीय संघीय संरचना में ‘बचे हुए अधिकार’ (Residuary Powers) का क्या महत्व है?

उत्तर:
‘बचे हुए अधिकार’ (Residuary Powers) उन शक्तियों को कहा जाता है जो संविधान में संघ सूची, राज्य सूची या समवर्ती सूची में स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं हैं। ये अधिकार संघ सरकार के पास होते हैं। भारतीय संघीय संरचना में:


प्रश्न 5: भारतीय संघीय प्रणाली में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर चर्चा करें।

उत्तर:
भारत का सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करने और भारत की संघीय प्रणाली के सही ढंग से संचालन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:

  1. विवाद समाधान: सर्वोच्च न्यायालय संघ और राज्यों के बीच या राज्यों के बीच शक्तियों और अधिकारक्षेत्र के विभाजन पर विवादों को हल करता है।
  2. न्यायिक समीक्षा: न्यायालय के पास यह अधिकार है कि वह केंद्रीय और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित कानूनों की समीक्षा कर सके, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे संविधान के अनुरूप हैं।
  3. संविधान के संरक्षक: यह सुनिश्चित करता है कि संविधान का उल्लंघन न हो, चाहे वह संघ सरकार द्वारा हो या राज्य सरकारों द्वारा, और संघीय संरचना की रक्षा करता है।
  4. संघीय प्रावधानों की व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों के वितरण जैसे संघीय प्रावधानों की व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 6: भारत में संघवाद को किन चुनौतियों का सामना है?

उत्तर:
भारत के संघवाद को कई चुनौतियाँ हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. शक्ति का केंद्रीकरण: केंद्रीय सरकार राज्यों पर महत्वपूर्ण नियंत्रण रखती है, विशेषकर आपातकालीन शक्तियों, वित्तीय नियंत्रण और अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के माध्यम से, जो राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
  2. भाषा और सांस्कृतिक विविधता: भारत में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता अक्सर विभिन्न राज्यों के बीच तनाव पैदा करती है, जिनमें से कुछ अधिक स्वायत्तता की मांग करते हैं।
  3. राज्य-राज्य विवाद: जल वितरण, सीमाओं और प्राकृतिक संसाधनों पर विवादों के कारण राज्यों के बीच तनाव होता है, जिसके लिए केंद्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
  4. वित्तीय संसाधनों में असंतुलन: जिन राज्यों के पास कम संसाधन होते हैं, वे कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने और बुनियादी ढांचे को बनाए रखने में संघर्ष करते हैं, जिसके कारण वित्तीय संसाधनों का अधिक समान वितरण की मांग होती है।
  5. राजनीतिक दबाव: राजनीतिक विचार अक्सर संघीय निर्णयों को प्रभावित करते हैं, जिससे कुछ राज्य राष्ट्रीय नीति-निर्माण में उपेक्षित या हाशिए पर महसूस करते हैं।

प्रश्न 7: भारतीय संविधान राज्यों के अधिकारों की रक्षा कैसे करता है?

उत्तर:
भारतीय संविधान में राज्यों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कई प्रावधान हैं:

  1. अनुच्छेद 1: भारत संघ को राज्यों का संघ घोषित करता है, जिससे राज्यों को संघ के अभिन्न भाग के रूप में पहचाना जाता है।
  2. अनुच्छेद 256-258: केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण संघ, राज्य और समवर्ती सूचियों के माध्यम से करता है।
  3. अनुच्छेद 253: यह सुनिश्चित करता है कि संसद राज्यों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मामलों में कानून बना सकती है।
  4. अनुच्छेद 356: हालांकि यह राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुमति देता है, लेकिन इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है, जिससे राज्यों को सामान्य परिस्थितियों में स्वायत्तता मिलती है।
  5. अनुच्छेद 32: राज्यों को यह अधिकार देता है कि वे केंद्रीय कानूनों को चुनौती दे सकते हैं यदि वे उनके अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
प्रश्न 8: भारत की संघीय संरचना में ‘बचे हुए अधिकारों’ का महत्व समझाइए।

उत्तर:
‘बचे हुए अधिकार’ (Residuary Powers) वे अधिकार होते हैं जो भारतीय संविधान की संघ सूची, राज्य सूची या समवर्ती सूची में स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं होते। ये अधिकार संघ सरकार को सौंपे गए हैं। इसका महत्व निम्नलिखित हैं:

  1. लचीलापन: यह केंद्रीय सरकार को संविधान के निर्माताओं द्वारा पूर्वानुमानित नहीं किए गए मामलों पर कानून बनाने की अनुमति देता है, जिससे यह नए चुनौतीपूर्ण और उभरते मामलों का समाधान कर सकती है।
  2. केंद्रीकरण: बचे हुए अधिकारों का संघ सरकार के पास होना भारत की संघीय प्रणाली में केंद्रीकरण को मजबूत करता है।
  3. शासन के लिए आवश्यक: बचे हुए अधिकारों के माध्यम से केंद्रीय सरकार नए मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है जो राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण हैं, खासकर एक तेजी से बदलती दुनिया में।

प्रश्न 9: भारत की संघीय प्रणाली में संघ राज्य क्षेत्रों (UTs) की भूमिका क्या है?

उत्तर:
संघ राज्य क्षेत्र (Union Territories – UTs) वे क्षेत्र होते हैं जो केंद्रीय सरकार द्वारा सीधे शासित होते हैं, राज्य सरकारों द्वारा नहीं। इनकी भूमिका भारत की संघीय प्रणाली में निम्नलिखित है:

  1. पूर्ण स्वायत्तता नहीं: राज्यों के विपरीत, संघ राज्य क्षेत्रों को समान स्वायत्तता नहीं मिलती और ये केंद्रीय सरकार के सीधे नियंत्रण में होते हैं।
  2. प्रशासन: भारत के राष्ट्रपति संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन करते हैं, और कुछ में विधायी विधानसभा भी होती है (जैसे दिल्ली या पुडुचेरी), जबकि कुछ का सीधा शासन केंद्रीय सरकार द्वारा होता है।
  3. विशेष स्थिति: कुछ संघ राज्य क्षेत्रों, जैसे जम्मू और कश्मीर (2019 तक), को ऐतिहासिक या राजनीतिक कारणों से विशेष स्थिति प्राप्त थी, हालांकि हाल की सुधारों के बाद यह स्थिति बदल गई है।

प्रश्न 10: संघवाद के संदर्भ में ‘द्वैध नागरिकता’ (Dual Citizenship) की अवधारणा को समझाइए।

उत्तर:
संघीय प्रणाली में, द्वैध नागरिकता का मतलब है कि व्यक्ति दो स्तरों की सरकारों—राष्ट्रीय और राज्य—के अधीन होता है। भारत में द्वैध नागरिकता की अनुमति नहीं है। भारतीय नागरिकों को एकल नागरिकता प्राप्त होती है, जो भारतीय नागरिकता होती है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है:

  1. राष्ट्रीय नागरिकता: भारत के सभी नागरिक केंद्रीय सरकार के कानूनों के अधीन होते हैं, चाहे वे किसी भी राज्य में रहते हों।
  2. राज्य पहचान: हालांकि भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है, विभिन्न राज्यों में लोग अपनी सांस्कृतिक, भाषाई, या क्षेत्रीय पहचान रखते हैं।

प्रश्न 11: भारत में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण को परिभाषित करने वाली तीन सूचियाँ कौन सी हैं?

उत्तर:
भारत के संविधान में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण तीन सूचियों के माध्यम से किया गया है:

  1. संघ सूची: इस सूची में ऐसे विषय होते हैं जिन पर केवल केंद्रीय सरकार कानून बना सकती है। इसमें रक्षा, विदेश नीति, और परमाणु ऊर्जा जैसे मामलों शामिल होते हैं।
  2. राज्य सूची: इस सूची में ऐसे विषय होते हैं जिन पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं। इसमें पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और कृषि जैसे क्षेत्र शामिल होते हैं।
  3. समवर्ती सूची: इस सूची में ऐसे विषय होते हैं जिन पर केंद्रीय और राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं। यदि दोनों के बीच टकराव होता है, तो केंद्रीय कानून प्रभावी होगा। इसमें आपराधिक कानून और विवाह जैसे क्षेत्रों को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 12: भारत में राजकोषीय संघवाद (Fiscal Federalism) का महत्व क्या है?

उत्तर:
राजकोषीय संघवाद केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संबंधों को कहा जाता है। भारत में यह महत्वपूर्ण है क्योंकि:

  1. राजस्व वितरण: संविधान केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के वितरण के लिए विभिन्न तंत्रों, जैसे वित्त आयोग के माध्यम से प्रावधान करता है।
  2. अनुदान और सहायता: केंद्रीय सरकार राज्य सरकारों को, विशेषकर उन राज्यों को जो कम विकसित हैं, वित्तीय सहायता और अनुदान प्रदान करती है।
  3. कर और उधारी: जबकि केंद्र और राज्य दोनों के पास कर लगाने की शक्ति होती है, केंद्रीय सरकार के पास अधिक वित्तीय शक्तियाँ होती हैं। राज्य अक्सर केंद्रीय सरकार से वित्तीय संसाधनों पर निर्भर होते हैं, जो उनकी स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है।

प्रश्न 13: भारत की संघीय संरचना में वित्त आयोग की भूमिका क्या है?

उत्तर:
वित्त आयोग भारत की संघीय संरचना में एक महत्वपूर्ण संस्था है, जो केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण के संबंध में सिफारिशें करती है। इसकी भूमिका निम्नलिखित है:

  1. राजस्व साझा करना: यह राज्यों का केंद्रीय करों और शुल्कों में हिस्सा निर्धारित करता है।
  2. राज्यों को अनुदान: यह उन राज्यों को अनुदान देने की सिफारिश करता है जिन्हें वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है।
  3. राजकोषीय जिम्मेदारी: यह राजकोषीय अनुशासन को सुधारने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के उपाय सुझाता है।

प्रश्न 14: भारत की संघीय प्रणाली में अंतर-राज्य परिषद (Inter-State Council) की भूमिका समझाइए।

उत्तर:
अंतर-राज्य परिषद (Inter-State Council – ISC) एक संवैधानिक निकाय है जिसे राज्यों और केंद्रीय सरकार के बीच समन्वय बढ़ाने और विवादों को हल करने के लिए स्थापित किया गया है। इसकी भूमिका निम्नलिखित है:

  1. विवाद समाधान: यह मंच राज्यों और केंद्रीय सरकार के बीच सामान्य हित के मामलों पर अंतर-राज्य विवादों को हल करने के रूप में कार्य करता है।
  2. सलाहकारी भूमिका: यह केंद्रीय सरकार को उन नीतियों पर सलाह देता है जो राज्यों को प्रभावित करती हैं, और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है।
  3. रिश्तों में सुधार: ISC राज्यों और केंद्र के बीच संवाद की सुविधा प्रदान कर रिश्तों में सुधार करने में मदद करता है।

प्रश्न 15: भारत में ‘सहकारी संघवाद’ (Cooperative Federalism) की अवधारणा का क्या मतलब है?

उत्तर:
सहकारी संघवाद उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें संघ और राज्य सरकारें मिलकर सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्य करती हैं, न कि विरोधाभास में। भारत में यह निम्नलिखित रूपों में प्रकट होता है:

  1. सहयोगात्मक प्रयास: दोनों स्तर की सरकारें नीति निर्माण, प्रशासन और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में मिलकर काम करती हैं।
  2. अंतर-सरकारी संस्थाएँ: अंतर-राज्य परिषद (Inter-State Council) और राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council) जैसी संस्थाएँ सहकारी संघवाद को बढ़ावा देती हैं।
  3. साझी जिम्मेदारी: शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास जैसे क्षेत्रों में संघ और राज्यों की जिम्मेदारी साझा होती है।

प्रश्न 16: भारत की संघीय प्रणाली में राज्य सभा (Rajya Sabha) की भूमिका क्या है?

उत्तर:
राज्य सभा (Council of States) भारत की संघीय प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह केंद्रीय संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। इसकी भूमिका निम्नलिखित है:

  1. राज्यों का प्रतिनिधित्व: प्रत्येक राज्य का राज्य सभा में प्रतिनिधित्व होता है, जिससे राज्य के हित राष्ट्रीय स्तर पर व्यक्त होते हैं।
  2. विधायी शक्ति: जबकि लोक सभा (निचला सदन) अधिक शक्तिशाली है, राज्य सभा के पास महत्वपूर्ण शक्तियाँ होती हैं, विशेष रूप से संघीय हितों से संबंधित विधायी मामलों में।

प्रश्न 17: भारत की संघीय संरचना में अनुच्छेद 356 का महत्व क्या है?

उत्तर:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356, जिसे राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) भी कहा जाता है, केंद्रीय सरकार को यह अधिकार देता है कि यदि राष्ट्रपति को यह लगता है कि कोई राज्य संविधान के प्रावधानों के अनुसार शासित नहीं हो सकता, तो वह राज्य सरकार का नियंत्रण केंद्रीय सरकार के हाथ में ले सकता है। इसका महत्व निम्नलिखित है:

  1. केंद्रीय नियंत्रण: यह केंद्रीय सरकार को उस स्थिति में हस्तक्षेप करने का एक तंत्र प्रदान करता है जब राज्य राजनीतिक अस्थिरता या शासन में विफलता का सामना कर रहे होते हैं।
  2. संघवाद के लिए खतरा: हालांकि यह एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, इसे राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर करने के रूप में देखा जा सकता है, जिससे केंद्रीकरण के प्रति चिंता उत्पन्न होती है।

प्रश्न 18: भारत की संघीय संरचना में संघ और राज्यों के बीच संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

उत्तर:
मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. अत्यधिक केंद्रीकरण: वित्त और आपातकालीन शक्तियों जैसे क्षेत्रों में केंद्र का प्रभुत्व राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
  2. राजनीतिक कारक: संघ और राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक दृष्टिकोणों में भिन्नताएँ कभी-कभी तनाव का कारण बनती हैं।
  3. आर्थिक विषमताएँ: राज्यों के बीच संसाधनों का असमान वितरण अक्सर विकासशील राज्यों में असंतोष उत्पन्न करता है।

प्रश्न 19: भारत के संविधान में कौन से प्रमुख प्रावधान हैं जो संघीय संरचना को बनाए रखने की गारंटी देते हैं?

उत्तर:
संघीय संरचना को बनाए रखने के लिए प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  1. अनुच्छेद 1: भारत संघ को राज्यों का संघ (Federation of States) के रूप में परिभाषित करता है।
  2. अनुच्छेद 245 से 255: इन अनुच्छेदों में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण विवरणित किया गया है।
  3. अनुच्छेद 368: यह संविधान में संशोधन की प्रक्रिया प्रदान करता है, लेकिन संघीय संरचना को प्रभावित करने वाले संशोधनों के लिए राज्यों की सहमति आवश्यक होती है।

प्रश्न 20: भारत में संघवाद देश की विविधता को किस प्रकार संबोधित करता है?

उत्तर:
भारत का संघवाद देश की विविधता को निम्नलिखित तरीकों से संबोधित करता है:

  1. राज्यों को स्वायत्तता: राज्य उन मामलों पर कानून बनाने के लिए सक्षम होते हैं जो क्षेत्रीय और सांस्कृतिक महत्व के होते हैं, जैसे भाषा, संस्कृति, और शिक्षा।
  2. क्षेत्रीय पहचान की सुरक्षा: संघीय व्यवस्था विभिन्न सांस्कृतिक पहचानों की सुरक्षा और संवर्धन करने की अनुमति देती है, जो एक एकीकृत भारत के भीतर विभिन्नता को बनाए रखती है।
  3. कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान: संविधान कुछ राज्यों, जैसे जम्मू और कश्मीर (पुनर्गठन से पहले) और उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए विशेष प्रावधान करता है, ताकि उनके विशिष्ट आवश्यकताओं का ख्याल रखा जा सके।

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