प्रश्न 1:
भारतीय संविधान का दार्शनिक आधार क्या है?
उत्तर:
भारतीय संविधान का दार्शनिक आधार न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों में गहराई से निहित है, जो भारतीय परंपराओं और पश्चिमी राजनीतिक आदर्शों से उत्पन्न हुए हैं। संविधान पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े थे:
- लोकतांत्रिक आदर्श (Democratic Ideals): ब्रिटिश संविधान से प्रेरित होकर, इसमें लोकतंत्र, शक्ति का पृथक्करण और चेक्स और बैलेंसेस के सिद्धांतों को शामिल किया गया है।
- सामाजिक न्याय (Social Justice): फ्रांसीसी क्रांति से प्रेरित कल्याणकारी राज्य का विचार, जो राज्य नीति के निर्देशक तत्वों (DPSP) में समाहित है, सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है।
- धर्मनिरपेक्षता (Secularism): भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता में निहित धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत, जो यह सुनिश्चित करता है कि राज्य धर्म से अलग रहे।
- गांधीवादी विचारधारा (Gandhian Ideals): संविधान महात्मा गांधी के विचारों को आत्मसात करता है, विशेष रूप से ग्राम स्वराज (गांवों का स्व-शासन), अहिंसा, और समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान को लेकर।
प्रश्न 2:
भारतीय संविधान न्याय के आदर्शों को कैसे प्रतिबिंबित करता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान न्याय के आदर्शों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय पर जोर देकर प्रतिबिंबित करता है:
- सामाजिक न्याय (Social Justice): संविधान untouchability (अस्पृश्यता) को समाप्त करने, अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBCs) के लिए सकारात्मक कार्रवाई को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है।
- आर्थिक न्याय (Economic Justice): राज्य नीति के निर्देशक तत्वों (DPSP) के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि राज्य को धन का समान वितरण करना चाहिए और हाशिए पर रहने वाले वर्गों को आर्थिक अवसर प्रदान करने चाहिए।
- राजनीतिक न्याय (Political Justice): यह सार्वभौमिक मताधिकार सुनिश्चित करता है, जिससे हर नागरिक को वोट देने का अधिकार मिलता है, चाहे उसकी जाति, धर्म या पंथ कुछ भी हो, इस प्रकार राजनीतिक समानता को सुनिश्चित करता है।
- न्यायिक समीक्षा (Judicial Review): न्यायपालिका यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि न्याय संविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले कानूनों और नीतियों को निरस्त कर दिया जाए।
प्रश्न 3:
भारतीय संविधान में “संप्रभुता” (Sovereign) के सिद्धांत का क्या महत्व है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में संप्रभुता का सिद्धांत यह संकेत करता है कि भारत एक स्वतंत्र, सर्वोच्च प्राधिकरण है, जिसके पास कानून बनाने, अपने नागरिकों को शासित करने और अपने मामलों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के प्रबंधित करने की शक्ति है:
- पूर्ण अधिकार (Absolute Authority): भारत अब किसी विदेशी शक्ति के नियंत्रण में नहीं है, जैसा कि ब्रिटिश शासन के दौरान था।
- स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता (Independent Decision-making): भारत को अपनी आंतरिक और बाहरी नीतियों को निर्धारित करने की स्वतंत्रता है। उदाहरण के लिए, यह अपनी आर्थिक नीतियों, सुरक्षा उपायों और कूटनीतिक संबंधों का निर्धारण कर सकता है, बिना किसी बाहरी प्रभाव के।
- बाहरी हस्तक्षेप का न होना (No Outside Interference): संप्रभुता यह सुनिश्चित करती है कि भारत के शासन, कानून और व्यवस्था से संबंधित निर्णय केवल उसकी संस्थाओं के क्षेत्राधिकार में हों और बाहरी ताकतों द्वारा निर्धारित न किए जाएं।
प्रश्न 4:
भारतीय संविधान में “समाजवाद” (Socialism) का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में समाजवाद का सिद्धांत सामाजिक और आर्थिक न्याय की प्रतिबद्धता में निहित है:
- सामूहिक कल्याण (Collective Welfare): संविधान एक ऐसे समाज की परिकल्पना करता है जहां धन और संसाधनों का उपयोग समुदाय के कल्याण के लिए किया जाए, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए, जैसा कि राज्य नीति के निर्देशक तत्वों (DPSP) में देखा जाता है।
- असमानताओं को कम करना (Reduction of Inequalities): समाजवाद का उद्देश्य आय और संपत्ति की असमानताओं को कम करना है, ताकि सभी नागरिकों को आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधारने के अवसर मिल सकें।
- सार्वजनिक स्वामित्व (Public Ownership): यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विचार को बढ़ावा देता है, जहां प्रमुख उद्योग जैसे रेलवे, बैंकिंग और टेलीcommunications राज्य द्वारा स्वामित्व और संचालन किए जाते हैं, ताकि संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित हो सके।
प्रश्न 5:
भारतीय संविधान में “धर्मनिरपेक्षता” (Secularism) का क्या महत्व है?
उत्तर:
भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को इस प्रकार लागू करता है कि राज्य धर्म के मामलों में तटस्थ रहे और किसी विशेष धर्म को प्राथमिकता न दे:
- सभी धर्मों का समान दर्जा (Equality of All Religions): संविधान अनुच्छेद 25 के तहत सभी धर्मों को समान उपचार की गारंटी देता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- कोई राज्य धर्म नहीं (No State Religion): कुछ देशों के विपरीत, भारत का कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है। संविधान यह सुनिश्चित करता है कि राज्य अपने नागरिकों पर धार्मिक कानूनों को लागू नहीं करता।
- धर्म की स्वतंत्रता (Freedom of Religion): नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन, प्रचार और प्रसार करने का अधिकार है, जिससे एक बहुलवादी समाज को बढ़ावा मिलता है।
- राज्य का धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप (State’s Role in Religious Matters): राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है, जैसे अस्पृश्यता और बाल विवाह जैसी प्रथाओं को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों के माध्यम से सामाजिक सुधार करना।
प्रश्न 6:
भारतीय संविधान की दार्शनिकता में “लोकतंत्र” (Democracy) का क्या स्थान है?
उत्तर:
लोकतंत्र भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों में से एक है:
- लोकतांत्रिक जनसत्ता (Sovereign People): संविधान जनसत्ता पर जोर देता है, अर्थात अंतिम शक्ति जनता के पास होती है, जो नियमित चुनावों के माध्यम से प्रतिनिधियों का चयन करती है।
- सार्वभौमिक मताधिकार (Universal Franchise): संविधान सभी नागरिकों को 18 वर्ष और उससे ऊपर के आयु वर्ग के नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे राजनीतिक समानता और शासन में भागीदारी सुनिश्चित होती है।
- बहुमत शासन और अल्पसंख्यक अधिकार (Majority Rule and Minority Rights): जबकि लोकतंत्र बहुमत शासन सुनिश्चित करता है, संविधान अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है, जैसे आरक्षण और मौलिक अधिकारों का संरक्षण।
- शक्ति का पृथक्करण (Separation of Powers): लोकतंत्र कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है, ताकि किसी एक शाखा को अत्यधिक शक्ति प्राप्त न हो।
प्रश्न 7:
राज्य नीति के निर्देशक तत्व (DPSP) क्या हैं, और ये संविधान की दार्शनिकता को कैसे प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तर:
राज्य नीति के निर्देशक तत्व (DPSP) गैर-न्यायिक दिशा-निर्देश हैं, जो राज्य को अपने नागरिकों की भलाई बढ़ाने और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने का मार्गदर्शन करते हैं:
- कानून निर्माण के लिए मार्गदर्शन (Guidance for Legislation): DPSP सरकार को नीतियाँ और कानून बनाने में मार्गदर्शन करते हैं, जैसे असमानताओं को कम करना, सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा देना, और सभी के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा सुनिश्चित करना।
- सामाजिक न्याय (Social Justice): DPSP समाजवाद और सामाजिक न्याय के विचार को बढ़ावा देते हैं, राज्य से अधिक समान समाज की ओर काम करने का आग्रह करते हैं।
- कानूनी रूप से लागू नहीं होते (Not Legally Enforceable): हालांकि ये न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, ये शासन का मार्गदर्शन करने के लिए होते हैं और कई विधायी सुधारों का आधार बने हैं।
प्रश्न 8:
भारतीय संविधान में “बंधुत्व” (Fraternity) का क्या महत्व है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में बंधुत्व का सिद्धांत राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देता है, और इसके विविध लोगों के बीच भाईचारे और आपसी सम्मान की भावना को प्रोत्साहित करता है:
- राष्ट्रीय एकता (National Integration): बंधुत्व विभिन्न धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय समुदायों के बीच अंतर को समाप्त करने का प्रयास करता है, और सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा देता है।
- सम्मान की रक्षा (Respect for Dignity): यह व्यक्ति की गरिमा का सम्मान करने और सामान्य भलाई को बढ़ावा देने की बात करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों को उनके पृष्ठभूमि के बावजूद समान रूप से सम्मान और अधिकार मिलें।
- भेदभाव का उन्मूलन (Non-Discrimination): संविधान यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समान अवसर मिले, और धर्म, जाति या पंथ के आधार पर भेदभाव न हो, इस प्रकार बंधुत्व को बढ़ावा देता है।
प्रश्न 9:
भारतीय संविधान में “स्वतंत्रता” (Liberty) के आदर्शों का क्या महत्व है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में स्वतंत्रता मुख्य रूप से मौलिक अधिकारों (भाग III) के माध्यम से सुनिश्चित की गई है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की गारंटी देते हैं:
- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression): अनुच्छेद 19 के तहत व्यक्तियों को अपने विचार और अभिव्यक्तियाँ स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार मिलता है।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty): संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जैसे स्वतंत्र रूप से देश के किसी भी हिस्से में निवास करने का अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत अवैध गिरफ्तारी से सुरक्षा।
- धर्म की स्वतंत्रता (Freedom of Religion): संविधान नागरिकों को अपने पसंदीदा धर्म का पालन, प्रचार और प्रसार करने का अधिकार प्रदान करता है, इस प्रकार धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
- स्वतंत्रता और जिम्मेदारी का संतुलन (Balancing Liberty and Responsibility): जबकि स्वतंत्रता प्रदान की जाती है, संविधान सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए उचित प्रतिबंध भी लगाता है।
प्रश्न 10:
संविधान की दार्शनिकता को समझने में प्रस्तावना (Preamble) का क्या महत्व है?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान के मूल मूल्यों और उद्देश्यों का दार्शनिक प्रतिबिंब है, जिसे संविधान प्राप्त करने का उद्देश्य है:
- संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य (Sovereign, Socialist, Secular, Democratic Republic): ये शब्द राज्य की प्रकृति और इसके सामाजिक और आर्थिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को परिभाषित करते हैं।
- न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व (Justice, Liberty, Equality, Fraternity): प्रस्तावना संविधान के न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक), स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और पूजा), समानता (स्थिति और अवसर की समानता), और बंधुत्व (गरिमा और एकता सुनिश्चित करना) पर जोर देती है।
- शासन के लिए प्रेरणा (Inspiration for Governance): प्रस्तावना भविष्य सरकारों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करती है, जो सभी कानूनों और नीतियों के लिए एक ढांचा प्रदान करती है।
प्रश्न 11:
भारतीय संविधान में “न्यायिक समीक्षा” (Judicial Review) की भूमिका क्या है?
उत्तर:
न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि भारतीय संविधान अपनी दार्शनिकता के प्रति सच्चा बना रहे, क्योंकि यह न्यायालयों को असंविधानिक कानूनों या कार्यकारी कार्रवाइयों को रद्द करने की अनुमति देती है। यह निम्नलिखित रूपों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है:
- मौलिक अधिकारों की रक्षा (Protecting Fundamental Rights): न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी कानून या सरकारी कार्रवाई जो व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं या अधिकारों का उल्लंघन करती है, उसे न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है।
- संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखना (Maintaining Constitutional Supremacy): यह संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सरकार की सभी शाखाएँ संविधानिक ढांचे के भीतर काम करती हैं।
- न्याय सुनिश्चित करना (Ensuring Justice): न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि विधायिका द्वारा पारित सभी कानून न्याय, समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के अनुरूप हों।
प्रश्न 12:
भारतीय संविधान व्यक्तिगत अधिकारों और समाज की भलाई के बीच संतुलन कैसे बनाता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान व्यक्तिगत अधिकारों और समाज की भलाई के बीच संतुलन राज्य नीति के निर्देशक तत्वों (DPSP) और मौलिक अधिकारों के संरचित ढांचे के माध्यम से बनाता है:
- मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं और राज्य की शक्ति के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- राज्य नीति के निर्देशक तत्व (Directive Principles): हालांकि ये न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, DPSPs राज्य को एक कल्याणकारी समाज बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं, जो सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक न्याय को बढ़ावा देता है।
- उचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions): संविधान व्यक्तिगत अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है, ताकि सार्वजनिक भलाई सुनिश्चित हो सके, जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखना।
प्रश्न 13:
भारतीय संविधान की दार्शनिकता में “कानून का शासन” (Rule of Law) का क्या महत्व है?
उत्तर:
कानून का शासन भारतीय संविधान की दार्शनिकता में एक मौलिक सिद्धांत है:
- कानून के सामने समानता (Equality Before Law): संविधान यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे उसकी स्थिति या पद कुछ भी हो, कानून से ऊपर नहीं है।
- न्याय प्रदान करना (Imparting Justice): यह सुनिश्चित करता है कि राज्य और उसकी शाखाओं द्वारा की गई सभी कार्रवाइयाँ कानून के अनुसार हों, जिससे निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- मनमानी शक्ति के खिलाफ सुरक्षा (Protection Against Arbitrary Power): कानून का शासन मनमानी शक्ति के खिलाफ एक सुरक्षा के रूप में कार्य करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सरकारी कार्रवाइयाँ कानूनी रूप से न्यायसंगत और पारदर्शी हों।
प्रश्न 14:
भारतीय संविधान में “गणराज्य” (Republic) का क्या महत्व है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में गणराज्य का सिद्धांत यह दर्शाता है कि राज्य का प्रमुख चुना हुआ होता है, न कि कोई सम्राट:
- चुने हुए राज्य प्रमुख (Elected Head of State): भारत का राष्ट्रपति चुनावी कॉलेज द्वारा चुना जाता है और राज्य का समारोहिक प्रमुख होता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि शक्ति जनता के पास रहती है।
- जनता की संप्रभुता (People’s Sovereignty): यह उस विचार को प्रतिबिंबित करता है कि संप्रभुता जनता के पास है, जो अपने प्रतिनिधियों को लोकतांत्रिक चुनावों के माध्यम से चुनती है।
- जवाबदेही (Accountability): राष्ट्रपति और अन्य पदाधिकारी जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि शक्ति किसी विरासत से मिलने वाली कुलीनता के हाथों में केंद्रित न हो।
प्रश्न 15:
भारतीय संविधान एक विविध समाज की चुनौतियों का कैसे समाधान करता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान एक विविध समाज की चुनौतियों का समाधान निम्नलिखित तरीके से करता है:
- सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकार (Cultural and Religious Rights): यह धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है, उन्हें अपनी संस्कृति और धर्म का पालन, प्रचार और संरक्षण करने की अनुमति देता है।
- संघीय ढांचा (Federal Structure): संविधान एक संघीय शासन प्रणाली स्थापित करता है, जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच शक्ति साझा की जाती है, जिससे क्षेत्रीय विविधता का सम्मान सुनिश्चित होता है।
- सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action): संविधान आरक्षण और सामाजिक कल्याण योजनाओं के प्रावधानों को शामिल करता है, जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान के लिए हैं।
प्रश्न 16:
“मौलिक कर्तव्यों” (Fundamental Duties) का संविधान की दार्शनिकता में क्या योगदान है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य नागरिकों की नैतिक जिम्मेदारियों की याद दिलाने के रूप में कार्य करते हैं:
- नागरिकों की जिम्मेदारियाँ (Citizens’ Responsibilities): ये नागरिकों से अपेक्षाएँ करते हैं कि वे संविधान में निहित मूल्यों की रक्षा करें, जैसे राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना, पर्यावरण की रक्षा करना और समाज में सद्भावना को बढ़ावा देना।
- सामाजिक जिम्मेदारी (Civic Responsibility): ये यह विचार बढ़ावा देते हैं कि व्यक्तिगत अधिकारों को समाज की सामूहिक भलाई के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
- संविधान की अखंडता (Constitutional Integrity): मौलिक कर्तव्य संविधान की दार्शनिकता को सुदृढ़ करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि नागरिक देश के लोकतांत्रिक और बहुलवादी मूल्यों में सक्रिय रूप से योगदान दें।
प्रश्न 17:
भारतीय संविधान एक बहुलवादी समाज में एकता और अखंडता कैसे बनाए रखता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान एक बहुलवादी समाज में एकता और अखंडता निम्नलिखित तरीकों से बनाए रखता है:
- संघीय प्रणाली और एकात्मक तत्व (Federal System with Unitary Features): संविधान क्षेत्रीय स्वायत्तता सुनिश्चित करता है, लेकिन राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में मजबूत केंद्रीय शासन प्रदान करता है।
- धर्मनिरपेक्षता (Secularism): धार्मिक स्वतंत्रता और समानता की गारंटी देकर, संविधान विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाए रखने में मदद करता है।
- विविधता में एकता (Unity in Diversity): संविधान भाषा, संस्कृति और धर्म के मामले में विविधता का सम्मान करने को बढ़ावा देता है, जबकि राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता पर भी जोर देता है।
प्रश्न 18:
भारतीय संविधान पर मुख्य दार्शनिक प्रभाव क्या हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान पर कई दार्शनिक परंपराओं का प्रभाव पड़ा है:
- भारतीय विचार (Indian Thought): अहिंसा और समानता जैसे सिद्धांत, जो महात्मा गांधी की शिक्षाओं से प्रभावित हैं, संविधान के सामाजिक न्याय पहलू को प्रभावित करते हैं।
- पश्चिमी राजनीतिक विचार (Western Political Ideas): यह ब्रिटिश और अमेरिकी संविधानों से लोकतांत्रिक सिद्धांतों, जैसे शक्तियों का पृथक्करण, मौलिक अधिकार और संसदीय लोकतंत्र, से प्रभावित है।
- समाजवादी आदर्श (Socialist Ideals): फ्रांसीसी क्रांति के समाजवाद और सामाजिक न्याय के विचारों से प्रेरित, संविधान कल्याणकारी उपायों और समानता पर जोर देता है।
प्रश्न 19:
गांधीवादी दर्शन का भारतीय संविधान पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गांधीवादी दर्शन ने भारतीय संविधान पर कई तरीकों से प्रभाव डाला:
- ग्राम स्वराज (Village Swaraj): गांधी के स्व-निर्भर गांवों और विकेन्द्रीकृत शासन का विचार पंचायती राज प्रणालियों की स्थापना में प्रभावी था।
- अहिंसा और सत्याग्रह (Non-Violence and Satyagraha): गांधी के अहिंसा और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के सिद्धांतों ने भारत के लोकतांत्रिक ethos को आकार दिया।
- सामाजिक कल्याण (Emphasis on Social Welfare): गांधी का ध्यान समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान पर था, जिसमें महिलाएं और दलित शामिल हैं, और यह संविधान में सामाजिक न्याय के प्रावधानों में परिलक्षित होता है।
प्रश्न 20:
भारतीय संविधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज की भलाई के बीच तनाव को कैसे सुलझाता है?
उत्तर:
भारतीय संविधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज की भलाई के बीच तनाव को निम्नलिखित तरीकों से सुलझाता है:
- मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध (Fundamental Rights with Restrictions): जबकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है, यह सार्वजनिक भलाई, सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है।
- राज्य नीति के निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy): DPSPs सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि राज्य अपने नागरिकों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए काम करें, जबकि व्यक्तिगत अधिकारों के साथ संतुलन बनाए रखा जाए।
- न्यायिक निगरानी (Judicial Oversight): न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं का उल्लंघन न हो, जबकि राज्य को सामान्य भलाई के लिए कानून बनाने की अनुमति देती है।
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