- न्यायपालिका का परिचय
न्यायपालिका भारतीय सरकार के तीन अंगों में से एक है, अन्य दो अंग कार्यपालिका और विधायिका हैं। इसका मुख्य कार्य कानूनों की व्याख्या करना, न्याय सुनिश्चित करना और संविधान की सुरक्षा करना है। भारतीय न्यायपालिका एक स्वतंत्र संस्था है, जो राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त है, और यह कानून के शासन को बनाए रखती है और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करती है।
भारत में सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायिक निकाय है, और इसके नीचे उच्च न्यायालय तथा अधीनस्थ न्यायालय होते हैं।
- लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका
न्यायपालिका लोकतांत्रिक व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण कार्य करती है:
- संविधान और कानूनों की व्याख्या: न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या करती है और यह सुनिश्चित करती है कि उन्हें समान रूप से और निष्पक्ष रूप से लागू किया जाए।
- मूल अधिकारों की रक्षा: न्यायपालिका नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, चाहे उनका उल्लंघन सरकार द्वारा हो या अन्य किसी द्वारा।
- न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका के पास कानूनों और सरकारी कार्यों की समीक्षा करने की शक्ति होती है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे संविधान के अनुरूप हों।
- विवाद समाधान: न्यायपालिका नागरिकों के बीच, सरकार और नागरिकों के बीच, और राज्यों और केंद्र सरकार के बीच विवादों का समाधान करती है।
- संविधान की संरक्षक: न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि संविधान का पालन किया जाए और राज्य की कार्यप्रणाली में इसका पालन हो।
- भारत में न्यायपालिका की संरचना
भारत में एक एकीकृत न्यायिक प्रणाली है, इसका मतलब है कि केंद्रीय और राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून पूरे देश में समान रूप से लागू होते हैं। न्यायपालिका एक पदानुक्रमित संरचना में व्यवस्थित है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है, उसके बाद उच्च न्यायालय और जिला स्तर पर अधीनस्थ न्यायालय होते हैं।
i. भारत का सर्वोच्च न्यायालय
- स्थिति: भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश का सर्वोच्च न्यायिक निकाय है और अंतिम अपील का अदालत है।
- अधिकार क्षेत्र:
- मूल अधिकार क्षेत्र: सर्वोच्च न्यायालय को संघ सरकार और राज्य सरकारों से संबंधित मामलों में मूल अधिकार क्षेत्र प्राप्त है। यह नागरिकों के मूल अधिकारों से संबंधित विवादों को भी देखता है।
- अपील अधिकार क्षेत्र: सर्वोच्च न्यायालय निचली अदालतों से अपील सुनता है, जिसमें उच्च न्यायालय भी शामिल है। इसके पास अन्य अदालतों द्वारा पारित निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति भी है।
- सलाहकार अधिकार क्षेत्र: राष्ट्रपति सार्वजनिक महत्व के कानूनी मामलों में सर्वोच्च न्यायालय से सलाह ले सकते हैं।
- हाईट अधिकार क्षेत्र: सर्वोच्च न्यायालय मूल अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न आदेश (हाईट) जारी कर सकता है, जिनमें हैबियस कॉर्पस, मैंडमस, प्रोहिबिशन, क्वो वारंटो, और सर्टियोरी शामिल हैं।
- संरचना: सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और अन्य न्यायधीश होते हैं। न्यायालय की कुल संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है, और यह 25 से 34 न्यायधीशों के बीच हो सकती है।
- न्यायधीशों की नियुक्ति: न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो CJI और वरिष्ठ न्यायधीशों की सिफारिश पर इसे करते हैं।
ii. उच्च न्यायालय
- स्थिति: उच्च न्यायालय राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायालय होते हैं और राज्य स्तर पर प्रमुख न्यायिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करते हैं।
- अधिकार क्षेत्र:
- मूल अधिकार क्षेत्र: उच्च न्यायालयों को अपने संबंधित राज्यों से संबंधित मामलों को सुनने की शक्ति प्राप्त है, जिसमें मूल अधिकारों से संबंधित मामले भी शामिल हैं।
- अपील अधिकार क्षेत्र: उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायिक आयोगों से अपील सुनते हैं।
- हाईट अधिकार क्षेत्र: उच्च न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार में मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए हाईट जारी कर सकते हैं।
- संरचना: उच्च न्यायालयों की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है, और अन्य न्यायधीश होते हैं, जिनकी संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।
- न्यायधीशों की नियुक्ति: न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो एक कॉलेजियम प्रणाली के आधार पर CJI और वरिष्ठ न्यायधीशों की सिफारिश पर नियुक्ति करते हैं।
iii. अधीनस्थ न्यायालय
- स्थिति: उच्च न्यायालयों के नीचे, भारत में जिला न्यायालय और अन्य निम्न न्यायालयों का नेटवर्क है जो देश में अधिकांश कानूनी मामलों को निपटाते हैं।
- अधीनस्थ न्यायालयों के प्रकार:
- जिला न्यायालय: यह जिला स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय होते हैं। ये निचली अदालतों से अपील सुनते हैं और अधिक राशि से जुड़े मामलों को सुनते हैं।
- मैजिस्ट्रेट कोर्ट: ये अदालतें अपराध से संबंधित मामलों और कुछ नागरिक मामलों को निपटाती हैं, विशेष रूप से निचले स्तर पर।
- सिविल कोर्ट: ये नागरिक मामलों को निपटाती हैं जैसे कि संपत्ति, अनुबंध, और पारिवारिक मामलों में विवाद।
- फैमिली कोर्ट: ये परिवार से संबंधित मामलों को निपटाती हैं जैसे कि तलाक, बच्चों की अभिरक्षा, और वंशानुगत अधिकार।
- विशेष न्यायालय: इनमें उपभोक्ता विवाद या औद्योगिक संबंधों से संबंधित न्यायालय शामिल होते हैं।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारतीय लोकतंत्र का आधार है। न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र है, जो निष्पक्ष और impartial न्याय सुनिश्चित करती है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- कार्यकाल की सुरक्षा: न्यायधीशों को निश्चित कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है और उन्हें केवल एक कठोर महाभियोग प्रक्रिया के माध्यम से हटाया जा सकता है।
- निश्चित वेतन और भत्ते: न्यायधीशों का वेतन और भत्ते संसद द्वारा निर्धारित होते हैं, और इन्हें अदालत के निर्णयों पर प्रभाव डालने के लिए परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
- बाहरी प्रभाव से संरक्षण: न्यायधीश कार्यपालिका या विधायिका से स्वतंत्र होते हैं और उनके न्यायिक कार्यों में कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता।
- न्यायिक समीक्षा
न्यायिक समीक्षा वह शक्ति है जिसके माध्यम से न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि कानून और कार्यकारी कार्य संविधान के अनुरूप हैं।
- भूमिका: न्यायपालिका किसी भी कानून या कार्यकारी क्रिया को असंवैधानिक घोषित कर सकती है यदि यह संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
- बेसिक स्ट्रक्चर का सिद्धांत: सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत की स्थापना की, जिसके अनुसार संविधान के कुछ मौलिक तत्वों को संशोधन के माध्यम से बदला या नष्ट नहीं किया जा सकता।
- जनहित याचिका (PIL)
जनहित याचिका (PIL) एक ऐसा उपकरण है जो नागरिकों को अदालत में अपने अधिकारों के प्रवर्तन के लिए और सार्वजनिक हित से जुड़े मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है।
- उद्देश्य: PIL का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय समाज के सबसे हाशिये पर रहने वाले वर्गों तक पहुँच सके, जिनके पास अदालतों में जाने के लिए संसाधन नहीं होते।
- प्रक्रिया: PIL किसी भी व्यक्ति या समूह द्वारा सार्वजनिक हित के लिए दायर की जा सकती है, और अदालत अपने आप (सूओ मोटो) सार्वजनिक हित से जुड़े मामलों का संज्ञान ले सकती है।
- न्यायिक सक्रियता और न्यायिक संयम
- न्यायिक सक्रियता: यह उस सक्रिय भूमिका को संदर्भित करती है जो न्यायपालिका संविधान और कानूनों की व्याख्या करने में निभाती है ताकि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों का समाधान किया जा सके। न्यायपालिका मौलिक अधिकारों का विस्तार करती है और न्याय सुनिश्चित करती है, यहां तक कि यदि इसका मतलब कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में प्रवेश करना हो।
- न्यायिक संयम: यह उस सिद्धांत को संदर्भित करता है जहाँ न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने से बचती है, जब तक कि यह बिल्कुल आवश्यक न हो। यह शक्तियों के पृथक्करण का सम्मान करती है और अपनी भूमिका को केवल कानून और संविधान की व्याख्या तक सीमित रखती है।
- न्यायपालिका में कानून बनाने की प्रक्रिया
- कानूनों की न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि विधायिका द्वारा पारित कानून संविधान के अनुरूप हों। यदि कोई कानून संविधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तो न्यायपालिका उसे निरस्त कर सकती है।
- पूर्ववर्ती का सिद्धांत (Stare Decisis): अदालतें पिछले निर्णयों (पूर्ववर्तियों) का पालन करती हैं ताकि कानून में निरंतरता और पूर्वानुमानिता बनी रहे। यह सिद्धांत कानूनी निश्चितता को बढ़ावा देता है।
- सामाजिक न्याय में न्यायपालिका की भूमिका
न्यायपालिका भारत में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है:
- सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और स्वतंत्रताओं की रक्षा करना, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले और कमजोर वर्गों के लिए।
- मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और उनके उल्लंघन के लिए उपाय प्रदान करना, जो कि हाईट के माध्यम से किया जाता है।
- न्यायिक सक्रियता के माध्यम से सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देना, जिसमें कानूनों की व्याख्या इस प्रकार की जाती है कि समकालीन सामाजिक मुद्दों जैसे बाल श्रम, महिला अधिकारों और पर्यावरण संरक्षण को संबोधित किया जा सके।
- निष्कर्ष
भारत में न्यायपालिका लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने, न्याय सुनिश्चित करने और कानून के शासन को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण करती है, संविधान की रक्षा करती है और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करती है। अपनी स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा और जनहित याचिका के माध्यम से, न्यायपालिका भारत के लोकतांत्रिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गई है।
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