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CBSE कक्षा 11 राजनीतिक विज्ञान अतिरिक्त प्रश्न उत्तर – अध्याय 8: स्थानीय शासन

प्रश्न 1:

स्थानीय शासन’ (Local Government) से आपका क्या अभिप्राय है? इसके लोकतांत्रिक प्रणाली में महत्व पर चर्चा करें।

उत्तर:
स्थानीय शासन वह प्रशासनिक निकाय होते हैं जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के भीतर स्थानीय मामलों का प्रबंधन करते हैं। यह प्रणाली जमीनी स्तर पर काम करती है और स्थानीय समुदाय के मामलों को संचालित करने के लिए अधिकार प्राप्त होती है। लोकतांत्रिक प्रणाली में इसके महत्व में शामिल हैं:

  1. शक्ति का विकेंद्रीकरण: स्थानीय शासन निर्णय लेने की प्रक्रिया को लोगों के पास लाता है, जिससे निर्णय स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं।
  2. लोकतंत्र को बढ़ावा: यह स्थानीय स्तर पर भागीदारी, जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों का संवर्धन होता है।
  3. प्रभावी शासन: यह स्थानीय मुद्दों जैसे शिक्षा, स्वच्छता, और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित कर बेहतर सेवा वितरण और अवसंरचना विकास सुनिश्चित करता है।
  4. लोगों का सशक्तिकरण: स्थानीय शासन समुदायों को अपने मामलों का प्रबंधन करने की क्षमता प्रदान करता है, जिससे नागरिकों को सशक्त बनाकर सामाजिक भागीदारी बढ़ाई जाती है।

प्रश्न 2:

भारत में स्थानीय शासन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर:
भारत में स्थानीय शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. विकेंद्रीकरण: शक्ति को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विकेन्द्रीकृत किया जाता है, जिससे स्थानीय समुदाय अपने मामलों का प्रबंधन कर सकते हैं।
  2. तीन-स्तरीय संरचना: भारत में स्थानीय शासन तीन स्तरों पर संचालित होता है—ग्रामीण (पंचायतें), शहरी (नगरपालिका), और जिला।
  3. संविधानिक स्थिति: 73वीं और 74वीं संविधान संशोधनों (1992) ने पंचायतों और नगरपालिकाओं को संविधानिक मान्यता दी, जिससे वे संविधानिक ढांचे का हिस्सा बन गईं।
  4. चुनाव: स्थानीय शासन निकायों के चुनाव लोगों द्वारा किए जाते हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित होती है।
  5. स्वायत्तता: स्थानीय निकायों को शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अवसंरचना विकास जैसे क्षेत्रों में निर्णय लेने की कुछ स्वायत्तता प्राप्त है।
  6. वित्तीय शक्तियाँ: स्थानीय निकायों को कर लगाने, राज्य और केंद्रीय सरकारों से अनुदान प्राप्त करने, और स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन करने की शक्ति प्राप्त है।

प्रश्न 3:

भारत में पंचायतों की संरचना और कार्यों की व्याख्या करें।

उत्तर:
पंचायतें भारत में ग्रामीण स्थानीय शासन निकाय हैं। इनकी संरचना तीन स्तरों पर होती है:

  1. ग्राम पंचायत: यह सबसे छोटा स्तर होता है जो गाँव स्तर पर कार्य करता है।
  2. पंचायत समिति: यह मध्यवर्ती स्तर होता है जो ब्लॉक या तहसील स्तर पर स्थित होती है।
  3. जिला परिषद: यह जिला स्तर पर उच्चतम स्तर का निकाय होता है।

पंचायतों के कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. स्थानीय प्रशासन: स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन, सार्वजनिक कल्याण योजनाओं की निगरानी, और विकास कार्यों का समन्वय।
  2. जन कल्याण: स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा और कृषि से संबंधित कार्यक्रमों का कार्यान्वयन।
  3. राजस्व सृजन: स्थानीय राजस्व सृजन के लिए भूमि कर, जल कर आदि लगाना।
  4. भागीदार शासन: स्थानीय नागरिकों को नियमित चुनावों और बैठकों के माध्यम से निर्णय लेने और शासन में भाग लेने के लिए प्रेरित करना।

प्रश्न 4:

भारत में स्थानीय शासन को मजबूत करने में 73वीं और 74वीं संविधान संशोधनों का क्या महत्व है?

उत्तर:
73वीं और 74वीं संविधान संशोधन (1992) भारत में स्थानीय शासन को मजबूत करने में मील का पत्थर साबित हुए। इनके महत्व में शामिल हैं:

  1. संविधानिक मान्यता: पंचायतों और नगरपालिकाओं को संविधानिक स्थिति प्राप्त हुई, जिससे उनका शासन और विकास में भूमिका सुनिश्चित हो गई।
  2. शक्ति का विकेंद्रीकरण: इन संशोधनों ने स्थानीय स्तर पर शासन को सशक्त किया, जिससे विकेंद्रीकरण और स्थानीय निकायों की स्वायत्तता को बढ़ावा मिला।
  3. महिलाओं के लिए आरक्षण: एक महत्वपूर्ण प्रावधान के तहत स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया गया, जिससे निर्णय लेने में लैंगिक समानता को बढ़ावा मिला।
  4. स्थानीय निकायों के चुनाव: इन संशोधनों ने यह सुनिश्चित किया कि स्थानीय निकायों के चुनाव सीधे चुनाव के द्वारा हों, जिससे स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ।
  5. शक्तियों का विकसन: इन संशोधनों ने राज्य सरकारों से स्थानीय निकायों को शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ सौंपीं, जिससे वे स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन कर सकें और स्थानीय समस्याओं को हल कर सकें।

प्रश्न 5:

भारत में स्थानीय सरकारों के कार्य में राज्य चुनाव आयोग की क्या भूमिका है?

उत्तर:
राज्य चुनाव आयोग (SEC) भारत में स्थानीय सरकारों के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:

  1. चुनाव कराना: SEC पंचायतों और नगरपालिकाओं जैसे स्थानीय निकायों के चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कराता है।
  2. पारदर्शिता सुनिश्चित करना: यह चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, जिसमें चुनावी सूची तैयार करना, मतदान केंद्रों का प्रबंधन और मतगणना शामिल है।
  3. चुनावों की निगरानी करना: SEC चुनावों की निगरानी करता है और चुनाव प्रक्रिया से संबंधित विवादों या शिकायतों का समाधान करता है।
  4. स्थानीय चुनावों का पर्यवेक्षण: यह स्थानीय चुनावों की निगरानी करता है और सुनिश्चित करता है कि वे कानूनी और संविधानिक मानदंडों के अनुसार हों, जिससे स्थानीय शासन लोकतांत्रिक बना रहे।

प्रश्न 6:

भारत में शहरी स्थानीय निकायों (नगरपालिकाएँ) की संरचना और कार्यों की व्याख्या करें।

उत्तर:
शहरी स्थानीय निकाय (नगरपालिकाएँ) शहरी क्षेत्रों में स्थानीय सरकार होती हैं। इनकी संरचना दो स्तरों पर होती है:

  1. नगरपालिका: छोटे शहरों और कस्बों के लिए होती है, जिसे एक सीधे चुने गए निकाय द्वारा संचालित किया जाता है, जिसे नगरपालिका परिषद कहा जाता है।
  2. नगर निगम: बड़े शहरों के लिए होती है, जिसे नगरपालिका निगम कहा जाता है और इसमें चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं जिन्हें निगम सदस्य या पार्षद कहा जाता है।

शहरी स्थानीय निकायों के कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. शहरी योजना: शहरी क्षेत्रों के विकास और योजना सुनिश्चित करना, जिसमें आवास, स्वच्छता, और अवसंरचना शामिल हैं।
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा: सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों, स्वच्छता, जल आपूर्ति और कचरा प्रबंधन का प्रबंधन करना।
  3. कराधान और राजस्व: संपत्ति कर, जल शुल्क जैसे कर लगाना और शहरी क्षेत्रों के विकास के लिए अन्य राजस्व एकत्र करना।
  4. सामुदायिक कल्याण: शहरी निवासियों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक कल्याण योजनाओं का कार्यान्वयन करना।

प्रश्न 7:

भारत में स्थानीय सरकारों की वित्तीय शक्तियाँ और संसाधन क्या हैं?

उत्तर:
भारत में स्थानीय सरकारों के पास अपनी कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए विशिष्ट वित्तीय शक्तियाँ और संसाधन होते हैं:

  1. कराधान की शक्तियाँ: स्थानीय निकायों को संपत्ति कर, जल कर, और पेशेवर कर जैसे कर लगाने की शक्ति प्राप्त है।
  2. राज्य और केंद्रीय सरकारों से अनुदान: राज्य और केंद्रीय सरकारों से विकास के लिए अनुदान और योजनाओं के रूप में वित्तीय सहायता प्राप्त होती है।
  3. ऋण: स्थानीय निकाय विशिष्ट परियोजनाओं के लिए वित्तीय संस्थानों से ऋण ले सकते हैं।
  4. स्वयं के राजस्व सृजन: करों के अलावा, स्थानीय सरकारें शुल्क, सार्वजनिक सेवाओं के लिए शुल्क और सार्वजनिक संपत्तियों को किराए पर देकर राजस्व उत्पन्न कर सकती हैं।
  5. वित्त आयोग: वित्त आयोग संघ और राज्यों के बीच वित्तीय वितरण के बारे में सिफारिशें करता है, जिसमें स्थानीय सरकारों के लिए आवंटन भी शामिल है।

प्रश्न 8:

भारत में स्थानीय सरकारें लोकतंत्र की प्रक्रिया में कैसे योगदान करती हैं?

उत्तर:
स्थानीय सरकारें भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं:

  1. जमीनी स्तर पर लोकतंत्र: यह जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देती है, क्योंकि यह नागरिकों को चुनावों, बहसों और सार्वजनिक बैठकों के माध्यम से निर्णय लेने की प्रक्रिया में सीधे भाग लेने का अवसर देती है।
  2. सार्वजनिक भागीदारी: यह स्थानीय शासन में लोगों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करती है, जिससे नागरिकों की चिंताओं को सुना जाता है।
  3. जवाबदेही: स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधि अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होते हैं, जिससे शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ता है।
  4. समावेशिता को बढ़ावा: महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए आरक्षण नीति के माध्यम से, स्थानीय सरकारें समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती हैं।

प्रश्न 9:

भारत में स्थानीय सरकारों द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

उत्तर:
भारत में स्थानीय सरकारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें शामिल हैं:

  1. वित्तीय स्वायत्तता की कमी: कई स्थानीय निकाय राज्य और केंद्रीय सरकारों पर वित्तीय रूप से निर्भर होते हैं, जिससे उनके निर्णय लेने की स्वायत्तता सीमित होती है।
  2. अपर्याप्त शक्तियाँ: संविधानिक मान्यता के बावजूद, स्थानीय सरकारों के पास पर्याप्त शक्तियाँ नहीं होतीं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
  3. राजनीतिक हस्तक्षेप: स्थानीय सरकारें अक्सर राज्य सरकारों से राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करती हैं, जो उनकी स्वायत्तता और प्रभावशीलता को कमजोर करता है।
  4. क्षमता और प्रशिक्षण की कमी: कई स्थानीय निकायों में आवश्यक तकनीकी, प्रबंधकीय और वित्तीय कौशल की कमी होती है, जिससे प्रभावी शासन में रुकावट आती है।
  5. अत्यधिक केंद्रीकरण: राज्य सरकारों का स्थानीय निकायों पर अत्यधिक नियंत्रण, विकेंद्रीकरण के लिए रास्ता नहीं देता है।

प्रश्न 10:

भारत में स्थानीय शासन निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए क्या प्रावधान हैं?

उत्तर:
73वीं और 74वीं संविधान संशोधनों (1992) ने स्थानीय शासन निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं:

  1. एक-तिहाई आरक्षण: इन संशोधनों के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में कम से कम एक तिहाई सीटों के लिए महिलाओं का आरक्षण सुनिश्चित किया गया है, जिससे उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो सकें।
  2. महिलाओं का सशक्तिकरण: इस आरक्षण का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदार बनाना है।
  3. प्रत्यक्ष चुनाव: महिलाओं को इन आरक्षित सीटों पर प्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है, जिससे वे स्थानीय शासन में सक्रिय भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न 11:

भारत में स्थानीय शासन के संदर्भ में जिला कलेक्टर की भूमिका पर चर्चा करें।

उत्तर:
जिला कलेक्टर भारत में स्थानीय शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

  1. प्रशासनिक प्रमुख: जिला कलेक्टर एक जिले के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं और जिला स्तर पर केंद्रीय और राज्य सरकार की नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं।
  2. समन्वय: वे स्थानीय शासन निकायों और राज्य सरकार के बीच समन्वय स्थापित करते हैं, जिससे कार्यप्रणाली और संचार में सुगमता बनी रहती है।
  3. विकासात्मक गतिविधियाँ: जिला कलेक्टर जिले स्तर पर विकास योजनाओं और कल्याण कार्यक्रमों की प्रगति की निगरानी करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग हो।
  4. राजस्व प्रशासन: वे जिले में राजस्व संग्रहण और भूमि अभिलेखों का प्रबंधन करते हैं, जिससे स्थानीय निकायों की वित्तीय स्वायत्तता में योगदान होता है।

प्रश्न 12:

स्थानीय शासन के संदर्भ में ‘विकेन्द्रीकृत योजना’ (Decentralized Planning) की अवधारणा को समझाएं।

उत्तर:
विकेन्द्रीकृत योजना उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें योजना, बजट और निर्णय-making स्थानीय स्तर पर किया जाता है, बजाय इसके कि केंद्रीय या राज्य सरकारों द्वारा इसे लागू किया जाए। स्थानीय शासन के संदर्भ में:

  1. स्थानीय आवश्यकताएँ: यह सुनिश्चित करता है कि योजना स्थानीय समुदाय की विशिष्ट आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार हो।
  2. सशक्तिकरण: स्थानीय लोग, निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से, मुद्दों की पहचान कर सकते हैं, समाधान प्रस्तावित कर सकते हैं और अपनी क्षेत्रीय विकास गतिविधियों को कार्यान्वित कर सकते हैं।
  3. संसाधन आवंटन की दक्षता: विकेन्द्रीकृत योजना यह सुनिश्चित करती है कि संसाधनों का आवंटन स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर हो, जिससे शासन में दक्षता बढ़ती है।
  4. लोगों की भागीदारी: यह स्थानीय समुदायों को योजना प्रक्रिया में अधिक भागीदारी का अवसर देता है, जिससे पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित होता है।

प्रश्न 13:

पंचायतों का ग्रामीण विकास में क्या योगदान है?

उत्तर:
पंचायतों का भारत में ग्रामीण विकास में केंद्रीय भूमिका है:

  1. स्थानीय शासन: पंचायतें अवसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों में स्थानीय विकास कार्यक्रमों का प्रबंधन और निगरानी करती हैं।
  2. जन कल्याण: पंचायतें गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण रोजगार और सामाजिक कल्याण से संबंधित सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन करती हैं।
  3. समुदाय की भागीदारी: पंचायतें सीधे समुदाय के साथ जुड़कर यह सुनिश्चित करती हैं कि ग्रामीण विकास पहलें प्रासंगिक हों और स्थानीय आवश्यकताओं को संबोधित करें।
  4. संसाधन प्रबंधन: वे जल, भूमि और जंगल जैसे स्थानीय संसाधनों के प्रबंधन में शामिल होती हैं, जिससे सतत ग्रामीण विकास में योगदान होता है।

प्रश्न 14:

भारत में नगरपालिकाओं की शक्तियाँ और कार्य क्या हैं?

उत्तर:
भारत में नगरपालिकाओं के पास विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ और कार्य होते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. शहरी योजना: वे शहरी विकास की योजना और प्रबंधन करती हैं, जिसमें आवास, परिवहन और वाणिज्यिक अवसंरचना शामिल है।
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता: नगरपालिका स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन और स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था करती हैं।
  3. राजस्व संग्रहण: वे संपत्ति कर जैसे कर एकत्र करती हैं और शहरी क्षेत्रों के विकास के लिए राजस्व उत्पन्न करती हैं।
  4. शिक्षा और कल्याण: वे अपनी अधिकार क्षेत्र में शिक्षा, कल्याण और सामाजिक सेवाओं के लिए योजनाओं का कार्यान्वयन करती हैं।

प्रश्न 15:

स्थानीय सरकारों की स्वायत्तता’ (Autonomy of Local Governments) की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:
स्थानीय सरकारों की स्वायत्तता का तात्पर्य है कि स्थानीय निकाय बिना किसी उच्चस्तरीय सरकारी हस्तक्षेप के अपने निर्णय लेने और मामलों का प्रबंधन करने में सक्षम होते हैं:

  1. निर्णय-निर्माण: स्थानीय सरकारों को स्थानीय मुद्दों जैसे विकास, कल्याण और अवसंरचना पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।
  2. वित्तीय स्वतंत्रता: स्वायत्तता में करों के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करने का अधिकार और स्थानीय विकास के लिए संसाधनों का प्रबंधन करने की क्षमता शामिल है।
  3. विधायी शक्तियाँ: स्थानीय निकायों को स्थानीय शासन के लिए कानून और अध्यादेश बनाने की शक्ति होनी चाहिए, जो संविधानिक सीमाओं के भीतर हो।
  4. राजनीतिक स्वतंत्रता: स्वायत्तता यह सुनिश्चित करती है कि स्थानीय निकाय राज्य या केंद्रीय सरकारों से राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से काम कर सकें।

प्रश्न 16:

स्थानीय स्तर पर ‘भागीदार शासन’ (Participatory Governance) की अवधारणा को समझाएं।

उत्तर:
भागीदार शासन का तात्पर्य है नागरिकों का सक्रिय रूप से निर्णय-निर्माण और शासन प्रक्रिया में भाग लेना। इसके मुख्य तत्व हैं:

  1. समावेशी निर्णय-निर्माण: स्थानीय नागरिक सार्वजनिक बैठकों, चर्चाओं और परामर्शों के माध्यम से ऐसे निर्णयों में योगदान करते हैं जो उनके समुदाय को प्रभावित करते हैं।
  2. सशक्तिकरण: यह स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि उन्हें विकास कार्यक्रमों की योजना और कार्यान्वयन में भाग लेने का अवसर मिलता है।
  3. पारदर्शिता: यह शासन में पारदर्शिता बढ़ाता है, क्योंकि प्रक्रिया सार्वजनिक समीक्षा और प्रतिक्रिया के लिए खुली होती है।
  4. जवाबदेही: स्थानीय स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधि अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होते हैं, जिससे शासन और प्रशासन अधिक उत्तरदायी होता है।

प्रश्न 17:

पंचायतों के कार्य में ग्राम सभाओं का क्या महत्व है?

उत्तर:
ग्राम सभा एक गाँव के सभी वयस्क निवासियों की सभा होती है और पंचायत के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है:

  1. निर्णय-निर्माण निकाय: यह गाँव स्तर पर प्राथमिक निर्णय-निर्माण निकाय के रूप में कार्य करती है, जो स्थानीय विकास से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय करती है।
  2. निगरानी और जवाबदेही: ग्राम सभाएँ ग्राम पंचायत के कार्यों की निगरानी करती हैं, जिससे शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
  3. भागीदारी: यह सुनिश्चित करती है कि सभी ग्रामीण, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समूह, विकास प्रक्रिया में भाग लें।
  4. शिकायत निवारण: ग्राम सभाएँ समुदाय के लिए एक मंच प्रदान करती हैं, जहां लोग सीधे पंचायत से अपने मुद्दों, शिकायतों और समस्याओं को उठा सकते हैं।

प्रश्न 18:

ग्रामीण अवसंरचना विकास में स्थानीय सरकार की भूमिका पर चर्चा करें।

उत्तर:
स्थानीय सरकारें, विशेष रूप से पंचायतें, ग्रामीण अवसंरचना विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं:

  1. सड़कें और परिवहन: पंचायतें ग्रामीण सड़कों और परिवहन प्रणालियों के निर्माण और रखरखाव की निगरानी करती हैं, जो गाँवों को शहरी क्षेत्रों से जोड़ती हैं।
  2. जल आपूर्ति और स्वच्छता: वे स्थानीय जल आपूर्ति प्रणालियों का प्रबंधन करती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में उचित स्वच्छता सुविधाएं सुनिश्चित करती हैं।
  3. आवास और कल्याण: पंचायतें ग्रामीण आवास योजनाओं को लागू करती हैं और कल्याण सेवाएँ जैसे बिजली और सामुदायिक हॉल प्रदान करती हैं।
  4. शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल: स्थानीय सरकारें स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और अन्य आवश्यक अवसंरचनाओं का निर्माण और रखरखाव करती हैं।

प्रश्न 19:

भारत में स्थानीय सरकारों के कार्य में राज्य सरकार की क्या भूमिका है?

उत्तर:
राज्य सरकार भारत में स्थानीय सरकारों के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है:

  1. शक्तियों का delegation: राज्य सरकार स्थानीय सरकारों को कुछ शक्तियाँ और कार्य सौंपने के लिए जिम्मेदार होती है, जिससे प्रशासन का विकेन्द्रीकरण होता है।
  2. वित्तीय समर्थन: यह स्थानीय विकास कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए अनुदान और योजनाओं के माध्यम से वित्तीय संसाधन प्रदान करती है।
  3. विधायी ढांचा: राज्य सरकार पंचायतों और नगरपालिकाओं के कार्यों को विनियमित करने के लिए कानून बनाती है, जिससे संविधानिक प्रावधानों का पालन होता है।
  4. निगरानी और समन्वय: राज्य सरकार स्थानीय निकायों की गतिविधियों की निगरानी और समन्वय करती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे राज्य नीतियों और प्राथमिकताओं के अनुरूप हों।

प्रश्न 20:

भारत में स्थानीय शासन को मजबूत करने के लिए कौन से कदम उठाए जाने चाहिए?

उत्तर:
भारत में स्थानीय शासन को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:

  1. स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना: स्थानीय निकायों को निर्णय-निर्माण, संसाधन आवंटन और योजनाओं के कार्यान्वयन में अधिक शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ सुनिश्चित करें।
  2. वित्तीय स्वतंत्रता में सुधार: स्थानीय निकायों को बेहतर राजस्व उत्पन्न करने के तरीके और राज्य और केंद्रीय सरकारों से वित्तीय विकेन्द्रीकरण के माध्यम से अधिक वित्तीय स्वायत्तता दें।
  3. क्षमता निर्माण: स्थानीय अधिकारियों को उनके प्रबंधकीय, तकनीकी और वित्तीय कौशल में सुधार के लिए प्रशिक्षण प्रदान करें, ताकि अधिक प्रभावी शासन संभव हो सके।
  4. नागरिकों की अधिक भागीदारी: नागरिकों, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों, को समुदाय-आधारित विकास पहलों के माध्यम से स्थानीय शासन में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करें।
  5. अधिकारों का विकेन्द्रीकरण: राज्य और केंद्रीय स्तरों से स्थानीय निकायों को अधिक अधिकार और जिम्मेदारियाँ सौंपने के लिए अधिकारों का और विकेन्द्रीकरण करें, जिससे केंद्रीकरण कम हो।

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