अधिगम उद्देश्य
- जलवायु नियंत्रण
- भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
- ऋतुएँ
- वर्षा का वितरण
- मानसून को एकता का सूत्र
जलवायु का मतलब है किसी बड़े क्षेत्र में मौसम की स्थितियों और परिवर्तनों का योग जो लंबे समय (30 वर्षों से अधिक) तक होता है।
मौसम का मतलब है किसी विशेष समय पर किसी स्थान पर वायुमंडल की स्थिति।
मौसम और जलवायु के तत्व समान होते हैं, जैसे तापमान, वायुमंडलीय दबाव, हवा, आर्द्रता और वर्षा। मासिक वायुमंडलीय स्थितियों के आधार पर वर्ष को विभिन्न ऋतुओं में बांटा जाता है, जैसे:
- सर्दी (विंटर)
- गर्मी (समर)
- बारिश (रेनी सीजन)
जलवायु नियंत्रण
किसी स्थान की जलवायु निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है:
- अक्षांश (Latitude): सूर्य की ऊर्जा अक्षांश के अनुसार बदलती है। समतल से ध्रुवों की ओर जाते हुए वायुमंडलीय तापमान घटता है।
- ऊँचाई (Altitude): ऊँचाई अधिक होने पर तापमान ठंडा होता है क्योंकि वहाँ की हवा पतली होती है।
- दबाव और हवाएँ (Pressure and Winds): अक्षांश और ऊँचाई दबाव और हवा के पैटर्न को प्रभावित करती हैं, जो तापमान और वर्षा को प्रभावित करती हैं।
- समुद्र से दूरी (Distance from the Sea): समुद्र के नजदीक रहने से जलवायु का मिजाज ठंडा या सामान्य रहता है, जबकि समुद्र से दूर होने पर जलवायु में अत्यधिक परिवर्तन (महाद्वीपीय प्रभाव) होते हैं।
- महासागर की धाराएँ (Ocean Currents): तटीय जलवायु पर समुद्र की गर्म या ठंडी धाराओं और तटीय हवाओं का प्रभाव पड़ता है।
- राहत की विशेषताएँ (Relief Features): पर्वतों की वजह से हवाएँ अवरुद्ध होती हैं और वर्षा होती है। वर्षा में बारिश, बर्फबारी, ओले और पानी की बौछारें शामिल होती हैं।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
- अक्षांश (Latitude):
भारत के मध्य से कर्क रेखा गुजरती है, जो पश्चिम में कच्छ के रण से लेकर पूर्व में मिजोरम तक फैली हुई है। भारत की जलवायु में उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय जलवायु के लक्षण पाए जाते हैं। - ऊँचाई (Altitude):
भारत में उत्तर में पर्वत और विशाल तटीय क्षेत्र हैं, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है। पर्वतों के कारण उपमहाद्वीप में मध्य एशिया की तुलना में अपेक्षाकृत हल्की सर्दियाँ होती हैं। - दबाव और हवाएँ (Pressure and Winds):
सर्दियों में हिमालय के उत्तर में उच्च दबाव क्षेत्र बनता है। इस क्षेत्र से शुष्क और ठंडी हवाएँ दक्षिण की ओर कम दबाव वाले क्षेत्र में बहती हैं।
गर्मियों में स्थिति पलट जाती है। उत्तर-पश्चिमी भारत और एशिया के अंदरूनी हिस्सों में निम्न दबाव क्षेत्र विकसित हो जाता है। अब हवाएँ दक्षिण की ओर बहती हैं और गर्म महासागरों से नमी लाती हैं। ये हवाएँ दक्षिण-पश्चिम मानसून हवाएँ कहलाती हैं, जो भारत में व्यापक वर्षा का कारण बनती हैं। - जेट स्ट्रीम (Jet Streams):
जेट स्ट्रीम तेज़ बहने वाली, संकरी, घूमने वाली हवा की धाराएँ होती हैं, जो वातावरण में होती हैं।
ऋतुएँ
भारत में 4 मुख्य ऋतुएँ पहचानी जाती हैं:
- सर्दी की ऋतु (Winter):
यह उत्तर भारत में मध्य नवम्बर से शुरू होकर फरवरी तक रहती है।
दिसंबर और जनवरी उत्तर भारत के सबसे ठंडे महीने होते हैं।
तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर घटता है।
दिन गर्म और रातें ठंडी होती हैं।
इस मौसम में आकाश साफ, तापमान और आर्द्रता कम होती है, और हवाएँ कमजोर होती हैं।
यह ऋतु ‘रबी’ फसलों की खेती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। - गर्मी की ऋतु (Summer):
यह मार्च से मई तक रहती है।
उत्तर भारत में तापमान बढ़ता है और वायुमंडलीय दबाव घटता है।
एक विशेष विशेषता: ‘लू’ – दिन के समय तेज़, गरम और शुष्क हवाएँ उत्तर और उत्तर-पश्चिम में बहती हैं।
‘आम की बौछारें’ के नाम से जानी जाने वाली प्री-मोनसून वर्षा से आम पकने में मदद मिलती है। - मानसून की ऋतु (Rainy Season):
- दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवाएँ (South-East Trade Winds):
यह हवाएँ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से उठती हैं और समतल रेखा को पार करते हुए भारत के उपमहाद्वीप में दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में बहती हैं। ये हवाएँ लगभग एक महीने तक भारत में रहती हैं। - मॉसिनराम (Mawsynram):
यह स्थान खासी पहाड़ियों के दक्षिणी हिस्से में स्थित है और यहाँ दुनिया की सबसे अधिक औसत वार्षिक वर्षा होती है। - मानसून में टूटने (Breaks in Monsoon):
यह मानसून ट्रफ के आंदोलन से जुड़ा हुआ है। मानसून ट्रफ का अक्ष वर्षा वितरण को निर्धारित करता है।
उष्णकटिबंधीय अवसाद मानसून की तीव्रता, अवधि और अनिश्चितता पर प्रभाव डालते हैं।
- पिछला/पुनः मानसून (Transition Season):
अक्टूबर-नवंबर संक्रमण: मानसून की वापसी
यहाँ आकाश साफ और तापमान बढ़ता है।
दिन गर्म होते हैं, जबकि रातें ठंडी और आरामदायक होती हैं।
‘अक्टूबर की गर्मी’ – उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण दिन में असहनीय गर्मी का अनुभव होता है।
अक्टूबर के दूसरे हिस्से में उत्तर भारत में तापमान तेजी से गिरता है क्योंकि सर्दी का मौसम नजदीक आता है।
वर्षा का वितरण
- पश्चिमी तट और उत्तर-पूर्वी भारत के कुछ हिस्से में लगभग 400 सेंटीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है।
- पश्चिमी राजस्थान और गुजरात, हरियाणा, पंजाब के कुछ हिस्सों में वर्षा 60 सेंटीमीटर से कम होती है।
- दक्कन पठार के अंदरूनी हिस्से और सह्याद्रि पर्वत के पूर्व में वर्षा कम होती है।
- हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी सीमित होती है।
- वार्षिक वर्षा हर वर्ष में बहुत भिन्न होती है।
मानसून के रूप में एकता का सूत्र
“भारत में मानसून, एक लयबद्ध ऋतु लेकर आता है, जिसे देशभर में लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। ये हवाएँ कृषि कार्यों के लिए महत्वपूर्ण पानी प्रदान करती हैं।”
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