CBSE कक्षा 11 राजनीतिक विज्ञान अतिरिक्त प्रश्न उत्तर: अध्याय 1 – राजनीतिक सिद्धांत: एक परिचय

प्रश्न 1:

राजनीतिक सिद्धांत क्या है, और यह राजनीति को समझने में क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत विचारों, अवधारणाओं, और विचारधाराओं का अध्ययन है जो राजनीतिक विश्लेषण का आधार बनती हैं। यह शक्ति, न्याय, समानता, और स्वतंत्रता जैसी अवधारणाओं को समझने का प्रयास करता है और यह देखता है कि ये विचार राजनीतिक प्रणालियों और शासन को कैसे आकार देते हैं। राजनीतिक सिद्धांत राजनीति को समझने में महत्वपूर्ण है क्योंकि:

  • राजनीतिक अवधारणाओं को स्पष्ट करना: यह लोकतंत्र, संप्रभुता, और नागरिकता जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाओं को परिभाषित करने में मदद करता है।
  • राजनीतिक क्रियावली के लिए रूपरेखा प्रदान करना: यह राजनीतिक व्यवहार को मार्गदर्शन प्रदान करता है और यह बताता है कि राज्य और समाज में व्यक्तियों की भूमिका क्या होनी चाहिए।
  • विचारधाराओं का विश्लेषण: यह विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं (जैसे उदारवाद, समाजवाद, परंपरावाद) का विश्लेषण करता है और यह देखता है कि ये नीतियों और शासन को कैसे प्रभावित करती हैं।
  • आलोचनात्मक सोच का विकास: यह आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करता है और राजनीतिक संरचनाओं की वैधता पर सवाल उठाता है।

प्रश्न 2:

राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक विज्ञान के बीच संबंध पर चर्चा करें।

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक विज्ञान घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए लेकिन अलग-अलग क्षेत्र हैं:

  • राजनीतिक सिद्धांत: यह राजनीति के नैतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है। यह न्याय, अधिकार, शक्ति, और समाज में व्यक्तियों की भूमिका जैसी अवधारणाओं से संबंधित है। यह “क्या होना चाहिए?” सवालों का उत्तर देता है। यह दार्शनिक है और नैतिकता, सिद्धांतों और मूल्यों से जुड़ा हुआ है।
  • राजनीतिक विज्ञान: इसके विपरीत, राजनीतिक विज्ञान मुख्य रूप से वास्तविक घटनाओं का अध्ययन करता है। यह वास्तविक राजनीतिक प्रणालियों, व्यवहारों, संस्थाओं और प्रक्रियाओं का विश्लेषण करता है। यह “क्या है?” सवालों का उत्तर देता है। यह वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करता है।

परस्पर संबंध: राजनीतिक विज्ञान राजनीतिक सिद्धांत द्वारा स्थापित वैचारिक ढांचे से लाभान्वित होता है। सिद्धांतिक विचार राजनीतिक प्रणालियों के अध्ययन को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जबकि राजनीतिक विज्ञान के वास्तविक निष्कर्ष राजनीतिक सिद्धांतों को चुनौती दे सकते हैं या उनका समर्थन कर सकते हैं।


प्रश्न 3:

राजनीतिक सिद्धांत का अध्ययन करने के प्रमुख दृष्टिकोण क्या हैं?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के कई दृष्टिकोण हैं, जो विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान करते हैं:

  • नैतिक दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण यह देखता है कि क्या होना चाहिए, न कि क्या हो रहा है। यह न्याय, अधिकार, और सरकार की भूमिका जैसे नैतिक सवालों से संबंधित है।
  • प्रायोगिक दृष्टिकोण: यह वास्तविक दुनिया में हो रही घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करता है। यह वास्तविक राजनीतिक प्रथाओं, व्यवहारों, और परिणामों का निरीक्षण करता है, और अक्सर डेटा और केस स्टडीज़ का उपयोग करता है।
  • विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण तार्किक reasoning और तर्क का उपयोग करता है ताकि राजनीतिक अवधारणाओं और विचारों की स्पष्टता की जा सके। इसका उद्देश्य स्पष्ट परिभाषाएं और सुसंगत सिद्धांतों का विकास करना है।
  • ऐतिहासिक दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण राजनीतिक विचारों के समय के साथ विकास पर ध्यान केंद्रित करता है और राजनीतिक दार्शनिकों के कार्यों और उनके राजनीतिक प्रभावों का अध्ययन करता है।
  • आलोचनात्मक दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण प्रमुख राजनीतिक विचारधाराओं, प्रणालियों और संरचनाओं की आलोचना करता है और प्रायः शक्ति, असमानता, और उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर जोर देता है।

प्रश्न 4:

राजनीतिक विचारधाराओं के अध्ययन का महत्व समझाएं।

उत्तर:
राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन राजनीति के विचारों की विविधता को समझने और यह जानने के लिए आवश्यक है कि राजनीतिक शक्ति को कैसे परिभाषित किया जाता है। राजनीतिक विचारधाराएं राजनीतिक क्रियावली और नीति निर्माण के लिए रूपरेखा प्रदान करती हैं। इनका महत्व निम्नलिखित है:

  • राजनीतिक क्रियावली को मार्गदर्शन देना: उदारवाद, परंपरावाद, समाजवाद, और नारीवाद जैसी विचारधाराएं राजनीतिक रणनीतियाँ और लक्ष्य प्रदान करती हैं।
  • नीतियों का आकार देना: राजनीतिक विचारधाराएं उन नीतियों को प्रभावित करती हैं, जिन्हें सरकारें अपनाती हैं, जैसे आर्थिक प्रबंधन, नागरिक अधिकार, और विदेश नीति।
  • राजनीतिक पहचान को परिभाषित करना: विचारधाराएं व्यक्तियों और समूहों को उनकी राजनीतिक पहचान परिभाषित करने में मदद करती हैं, और यह उनके मूल्य और विश्वासों को प्रभावित करती हैं।
  • राजनीतिक संघर्ष को समझना: विचारधाराएं अक्सर राजनीतिक संघर्ष का स्रोत होती हैं, क्योंकि विभिन्न विचारधाराएं समाज और शासन के लिए प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोणों की वकालत करती हैं।

प्रश्न 5:

राजनीतिक सिद्धांत लोकतंत्र को समझने में कैसे मदद करता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत लोकतंत्र को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह इसके सिद्धांतों, संरचनाओं और प्रथाओं का गहन विश्लेषण करता है। यह निम्नलिखित तरीकों से मदद करता है:

  • लोकतंत्र की परिभाषा: राजनीतिक सिद्धांतिकज्ञ लोकतंत्र के विभिन्न रूपों की परिभाषा देते हैं, जैसे प्रत्यक्ष और प्रतिनिधि लोकतंत्र, और संसद और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं की भूमिका।
  • लोकतंत्र का औचित्य: यह लोकतंत्र के नैतिक औचित्य पर विचार करता है, यह बताता है कि यह मानवाधिकारों की रक्षा करने, राजनीतिक समानता सुनिश्चित करने, और भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सर्वोत्तम रूप है।
  • लोकतांत्रिक प्रथाओं का मूल्यांकन: यह लोकतांत्रिक प्रणालियों के कार्यप्रणाली की आलोचना करता है, और यह सवाल उठाता है कि लोकतंत्र की गुणवत्ता क्या है, किन समूहों की भागीदारी होती है, और लोकतांत्रिक संस्थाओं की प्रभावशीलता।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों का अन्वेषण: यह स्वतंत्रता, समानता, और न्याय जैसे लोकतंत्र के मूल्यों की भी पड़ताल करता है, और यह देखता है कि विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों में इन मूल्यों को कैसे लागू किया जाता है।

प्रश्न 6:

राजनीतिक दर्शन का अध्ययन राजनीतिक सिद्धांत को समझने में क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर:
राजनीतिक दर्शन वह आधार है जिस पर अधिकांश राजनीतिक सिद्धांत आधारित होते हैं। इसका महत्व इस प्रकार है:

  • नैतिक आधार प्रदान करना: यह यह विचार करता है कि क्या होना चाहिए और न्याय, समानता, और अधिकार जैसे राजनीतिक सिद्धांतों के लिए एक नैतिक आधार प्रदान करता है।
  • राजनीतिक सिद्धांत को प्रभावित करना: यह प्रमुख विचारों और तर्कों को प्रदान करता है जो राजनीतिक सिद्धांत को आकार देते हैं, और यह यह तय करता है कि हम राज्य की सत्ता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और लोकतांत्रिक भागीदारी जैसे अवधारणाओं को कैसे समझते हैं।
  • संकल्पना की स्पष्टता: यह स्वतंत्रता, शक्ति, और संप्रभुता जैसे राजनीतिक शब्दों की स्पष्टता करने में मदद करता है और इस प्रकार राजनीति को अधिक सटीक रूप से समझने में मदद करता है।
  • नैतिक और伦理 मार्गदर्शन: यह यह विचार करता है कि समाजों को किस प्रकार संरचित किया जाना चाहिए और राजनीतिक निर्णय-निर्माण में कौन से मूल्यों का पालन किया जाना चाहिए।

प्रश्न 7:
पश्चिमी राजनीतिक विचारकों का राजनीतिक सिद्धांत में योगदान पर चर्चा करें।

उत्तर:
पश्चिमी राजनीतिक विचारकों ने राजनीतिक सिद्धांत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है। उनके कुछ प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं:

  • प्लेटो: प्लेटो के गणराज्य कार्य ने न्याय और आदर्श राज्य के अध्ययन की नींव रखी। उन्होंने दार्शनिक-राजा की अवधारणा प्रस्तुत की और व्यक्ति और राज्य के बीच संबंधों की जांच की।
  • अरस्तु: अरस्तु की राजनीति में विभिन्न प्रकार की सरकारों का विश्लेषण किया गया, जैसे लोकतंत्र, शासकता, और राजतंत्र, और मिश्रित संविधान के महत्व पर जोर दिया।
  • निकोलो माचियावेली: द प्रिंस में माचियावेली ने शक्ति राजनीति और वास्तविकतावादी राजनीति (रियलपॉलिटिक) पर चर्चा की, जिसमें शासक की भूमिका और सत्ता बनाए रखने की रणनीतियाँ शामिल थीं।
  • जॉन लॉक: लॉक के प्राकृतिक अधिकारों और सहमति से सरकार के सिद्धांत ने उदारवादी लोकतंत्र और संवैधानिकता के विकास को गहरे प्रभाव डाला।
  • कार्ल मार्क्स: मार्क्स ने पूंजीवाद की आलोचना की और वर्ग संघर्ष के सिद्धांत को प्रस्तुत किया, जो समाजवाद और साम्यवाद की नींव बन गया, जिसमें राज्य की भूमिका आर्थिक असमानताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण है।
  • जॉन स्टुअर्ट मिल: मिल का उपयोगितावाद और उदारवाद पर काम व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा पर केंद्रित था, जिसमें लोकतांत्रिक शासन और समान अवसरों की आवश्यकता की वकालत की गई थी।

प्रश्न 8:
राज्य में शक्ति की प्रकृति को समझने में राजनीतिक सिद्धांत कैसे मदद करता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत राज्य में शक्ति की प्रकृति को समझने में इस प्रकार मदद करता है:

  • शक्ति की परिभाषा: राजनीतिक सिद्धांत शक्ति की विभिन्न परिभाषाएँ प्रदान करता है, जैसे- दमनकारी शक्ति, प्रभाव, और अधिकार। यह जांचता है कि शक्ति का प्रयोग व्यक्ति, समूहों और संस्थाओं द्वारा कैसे किया जाता है।
  • शक्ति संरचनाओं का विश्लेषण: शक्ति के सिद्धांत यह जांचते हैं कि समाजों में शक्ति की संरचना कैसे की जाती है, और राज्य, उच्च वर्ग और सामाजिक आंदोलनों की भूमिका की पहचान करते हैं।
  • शक्ति के अंतर्संबंध का विश्लेषण: राजनीतिक सिद्धांत यह समझने में मदद करता है कि शक्ति समाज में कैसे वितरित और प्रतिस्पर्धित की जाती है, और यह असमानता, उत्पीड़न और प्रतिरोध के मुद्दों का अध्ययन करता है।
  • शक्ति और वैधता: यह भी जांचता है कि सत्ता की वैधता क्या है, शासक अपनी सत्ता को कैसे सही ठहराते हैं, और समाज इस सत्ता को कैसे स्वीकार या प्रतिरोध करता है।

प्रश्न 9:
राज्य की राजनीतिक सिद्धांत में क्या भूमिका है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत में राज्य एक केंद्रीय भूमिका निभाता है क्योंकि यह राजनीतिक जीवन को व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिए प्राथमिक संस्था है। इसकी भूमिका को कई तरीकों से समझा जा सकता है:

  • व्यवस्था प्रदान करना: राज्य कानून और व्यवस्था बनाए रखता है, पुलिस, सेना और न्यायिक प्रणाली जैसी संस्थाओं के माध्यम से अपनी सीमाओं के भीतर शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • न्याय सुनिश्चित करना: राज्य का कार्य सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना है, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना और असमानताओं को दूर करना है।
  • प्राधिकरण की वैधता: राजनीतिक सिद्धांतकार यह जांचते हैं कि राज्य अपनी वैधता कैसे प्राप्त करता है—क्या यह सहमति (सामाजिक अनुबंध सिद्धांत) के माध्यम से होता है या फिर ईश्वरीय अधिकार, बल या अन्य तरीकों से।
  • सामान्य भलाई को बढ़ावा देना: राज्य का कार्य सामान्य भलाई को बढ़ावा देना है, व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन स्थापित करना।

प्रश्न 10:
राजनीतिक सिद्धांत उदारवाद और समाजवाद जैसी राजनीतिक विचारधाराओं को समझने में कैसे मदद करता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत उदारवाद और समाजवाद जैसी राजनीतिक विचारधाराओं को समझने में इस प्रकार मदद करता है:

  • ऐतिहासिक संदर्भ: राजनीतिक सिद्धांत उदारवाद और समाजवाद जैसी विचारधाराओं के विकास का ऐतिहासिक अवलोकन प्रदान करता है, यह बताते हुए कि ये विचारधाराएँ राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक परिस्थितियों के बदलाव के परिणामस्वरूप कैसे विकसित हुईं।
  • मूल सिद्धांत: यह उदारवाद (जैसे- व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मुक्त बाजार, सीमित सरकार) और समाजवाद (जैसे- सामूहिक स्वामित्व, आर्थिक समानता, सामाजिक कल्याण) के बुनियादी सिद्धांतों को तोड़ता है।
  • दार्शनिक नींव: राजनीतिक सिद्धांत इन विचारधाराओं की दार्शनिक नींव की जांच करता है, जैसे- जॉन लॉक (उदारवाद) और कार्ल मार्क्स (समाजवाद) के विचारों को।
  • तुलनात्मक विश्लेषण: राजनीतिक सिद्धांत इन विचारधाराओं की तुलना करता है, यह दिखाता है कि राज्य हस्तक्षेप, सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं के संदर्भ में ये विचारधाराएँ किस प्रकार भिन्न हैं।

प्रश्न 11:
मानवाधिकारों को समझने में राजनीतिक सिद्धांत का क्या महत्व है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत मानवाधिकारों को समझने में इस प्रकार महत्वपूर्ण है:

  • मानवाधिकारों की परिभाषा: राजनीतिक सिद्धांत मानवाधिकारों की अवधारणा को परिभाषित करने में मदद करता है, जैसे- प्राकृतिक अधिकार (जैसे- जीवन का अधिकार) और कानूनी अधिकार (जैसे- वोट देने का अधिकार)।
  • दार्शनिक न्यायसंगतियां: यह मानवाधिकारों के लिए दार्शनिक न्यायसंगतियां प्रदान करता है, जैसे- न्याय, स्वतंत्रता, और समानता के सिद्धांतों को लागू करके।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानक: राजनीतिक सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय ढाँचों जैसे- यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के विकास को सूचित करता है, यह विश्लेषण करते हुए कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता और विभिन्न संस्कृतियों और समाजों में उनके अनुप्रयोग की क्या स्थिति है।
  • चुनौतियाँ और बहसें: यह मानवाधिकारों के दायरे और सीमाओं पर बहसों की भी जांच करता है, जैसे- व्यक्तिगत अधिकारों और सामूहिक जिम्मेदारियों या राज्य हितों के बीच संतुलन बनाना।

प्रश्न 12:
विभिन्न राजनीतिक विचारक समाज में व्यक्ति की भूमिका को कैसे देखते हैं?

उत्तर:
विभिन्न राजनीतिक विचारकों ने समाज में व्यक्ति की भूमिका पर विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं:

  • उदारवादी विचारक: जॉन लॉक और जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे उदारवादी विचारक व्यक्ति की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर जोर देते हैं, और राज्य के हस्तक्षेप को सीमित करने और व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं की वकालत करते हैं।
  • समाजवादी विचारक: समाजवादी विचारक जैसे- कार्ल मार्क्स व्यक्ति को एक सामूहिक समाज का हिस्सा मानते हैं, और यह मानते हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता आर्थिक समानता और सामान्य भलाई से जुड़ी हुई है।
  • सामुदायिक विचारक: सामुदायिक विचारक यह तर्क करते हैं कि व्यक्ति की पहचान सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों से आकारित होती है, और समुदाय की भलाई को व्यक्तिगतता से पहले प्राथमिकता दी जाती है।
  • संवेदनशील विचारक: एडमंड बर्क जैसे संवेदनशील विचारक परंपरा, स्थिरता, और सामाजिक व्यवस्था के महत्व पर जोर देते हैं, और अक्सर व्यक्ति को एक व्यापक नैतिक समुदाय का हिस्सा मानते हैं।

प्रश्न 13:
राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक न्याय को समझने में कैसे योगदान करता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक न्याय को समझने में इस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:

  • न्याय की परिभाषा: राजनीतिक सिद्धांतकार न्याय की अवधारणा पर बहस करते हैं, इसे विभिन्न तरीकों से परिभाषित करते हुए, जैसे- वितरणात्मक न्याय (संसाधनों का निष्पक्ष वितरण), प्रतिकारात्मक न्याय (अपराधों का दंड) और प्रक्रियात्मक न्याय (कानूनी प्रक्रियाओं में निष्पक्षता)।
  • न्याय प्रणाली का मूल्यांकन: राजनीतिक सिद्धांत विभिन्न राजनीतिक संरचनाओं में न्याय प्रणालियों की आलोचना करता है, और निष्पक्षता, समानता और पक्षपातीता के बारे में सवाल उठाता है।
  • नैतिक नींव: यह न्याय की नैतिक नींव की जांच करता है, और यह बताता है कि समानता, अधिकारों और निष्पक्षता जैसे सिद्धांत राजनीतिक निर्णयों को कैसे मार्गदर्शन करते हैं।
  • सामाजिक न्याय: राजनीतिक सिद्धांत सामाजिक न्याय पर भी जोर देता है, और यह आर्थिक असमानता, भेदभाव, और सामाजिक लाभों के उचित वितरण जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है।

प्रश्न 14:
राजनीतिक सिद्धांत समाज में असमानता की समस्या को कैसे संबोधित करता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत समाज में असमानता की समस्या को इस प्रकार संबोधित करता है:

  • असमानता के कारणों की पहचान: राजनीतिक सिद्धांतकार असमानता के कारणों की जांच करते हैं, जैसे- वर्ग, जाति, लिंग, और आर्थिक प्रणालियाँ।
  • समाधान प्रस्तुत करना: विभिन्न विचारधाराएँ असमानता के समाधान के लिए विभिन्न प्रस्ताव प्रस्तुत करती हैं। समाजवादी लोग संसाधनों के पुनर्वितरण की वकालत करते हैं, जबकि उदारवादी लोग समान अवसरों पर जोर देते हैं।
  • शक्ति संरचनाओं की आलोचना: राजनीतिक सिद्धांत उन राजनीतिक और आर्थिक संरचनाओं की आलोचना करता है जो असमानता को बनाए रखती हैं, जैसे- पूंजीवाद और पितृसत्तात्मकता।
  • न्याय के सिद्धांत: न्याय के सिद्धांत, जैसे- जॉन रॉल्स का थ्योरी ऑफ जस्टिस यह मानते हैं कि असमानताओं को दूर करने के लिए न्यायसंगत और समान अवसरों की आवश्यकता है।

प्रश्न 15:
राजनीतिक सिद्धांतकार स्वतंत्रता की अवधारणा को कैसे देखते हैं?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांतकार स्वतंत्रता को विभिन्न तरीकों से देखते हैं, जो मुख्य रूप से निम्नलिखित पर केंद्रित हैं:

  • नकारात्मक स्वतंत्रता: इसायाह बर्लिन जैसे दार्शनिकों ने स्वतंत्रता को हस्तक्षेप से स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया है, जहाँ व्यक्तियों को जो भी करना है, करने का अधिकार होता है, जब तक कि वह दूसरों को हानि नहीं पहुँचाता।
  • सकारात्मक स्वतंत्रता: जीन-जैक्स रूसो जैसे विचारक सकारात्मक स्वतंत्रता के विचार पर जोर देते हैं, जहाँ असली स्वतंत्रता वह है जब व्यक्ति अपनी तार्किक इच्छाओं के अनुसार कार्य कर सके, और इसके लिए राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक होता है ताकि व्यक्तिगत आत्म-साक्षात्कार के लिए सामाजिक परिस्थितियाँ सुनिश्चित की जा सकें।
  • गणराज्य स्वतंत्रता: गणराज्यवादी सिद्धांतकार स्वतंत्रता को प्रभुत्व से स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित करते हैं, यह तर्क करते हुए कि स्वतंत्रता तब सर्वोत्तम सुनिश्चित होती है जब व्यक्ति दूसरों या राज्य द्वारा मनमाने नियंत्रण से मुक्त होते हैं।
  • आर्थिक स्वतंत्रता: उदारवादी स्कूल आर्थिक स्वतंत्रता पर जोर देता है, मुक्त बाजार प्रणाली की वकालत करते हुए, जहाँ व्यक्तियों को राज्य के हस्तक्षेप के बिना आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार होता है।

प्रश्न 16:
राजनीतिक सिद्धांत शासन और राज्य को समझने में क्या भूमिका निभाता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत शासन और राज्य के स्वभाव और उद्देश्य को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:

  • राज्य की वैधता की खोज: राजनीतिक सिद्धांत राज्य की वैधता पर सवाल उठाता है, सामाजिक अनुबंध सिद्धांतों (जैसे- हॉब्स, लॉक, रूसो) का हवाला देते हुए।
  • संस्थाओं की भूमिका का विश्लेषण: राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक संस्थाओं जैसे- संसद, कार्यपालिका, और न्यायपालिका के कार्यों का अध्ययन करता है, और उनके शासन में भूमिका का विश्लेषण करता है।
  • शक्ति का संतुलन: यह शक्ति के पृथक्करण और सत्ता की जाँच करने के तंत्रों का विश्लेषण करता है ताकि अत्याचार को रोका जा सके।
  • सरकार की जिम्मेदारी: राजनीतिक सिद्धांत यह जांचता है कि सरकारों को कैसे संरचित किया जाना चाहिए ताकि व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन सुनिश्चित किया जा सके, और न्याय और सुरक्षा प्रदान की जा सके।

प्रश्न 17:
राजनीतिक सिद्धांत नागरिक अवज्ञा के मुद्दे को कैसे संबोधित करता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत नागरिक अवज्ञा को इस प्रकार संबोधित करता है:

  • न्यायसंगतता: हेनरी डेविड थॉरो और महात्मा गांधी जैसे विचारकों ने नागरिक अवज्ञा को अन्यायपूर्ण कानूनों या तानाशाही सरकारों के खिलाफ विरोध करने के एक अहिंसक तरीके के रूप में सही ठहराया।
  • नैतिक कर्तव्य: नागरिक अवज्ञा को उन कानूनों के खिलाफ नैतिक कर्तव्य के रूप में देखा जाता है जो न्याय और मानवाधिकार जैसे मौलिक नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
  • नागरिक अवज्ञा की सीमाएँ: राजनीतिक सिद्धांत नागरिक अवज्ञा की सीमाओं पर भी चर्चा करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह शांतिपूर्ण हो, कानून के शासन का सम्मान करता हो, और अन्यायपूर्ण प्रणालियों को बदलने का उद्देश्य रखता हो।
  • प्रभावशीलता: सिद्धांत नागरिक अवज्ञा की राजनीतिक परिवर्तन में प्रभावशीलता का मूल्यांकन करते हैं और इसके व्यक्तिगत और समाज पर प्रभाव की चर्चा करते हैं।

प्रश्न 18:
राजनीतिक सिद्धांत अधिकारिता को समझने में क्या भूमिका निभाता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत अधिकारिता को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:

  • अधिकारिता की परिभाषा: राजनीतिक सिद्धांतकार वैध और अवैध अधिकारिता के बीच अंतर करते हैं, यह जांचते हुए कि शासकों को शासित करने का अधिकार किससे मिलता है।
  • अधिकारिता के स्रोत: यह अधिकारिता के विभिन्न स्रोतों की जांच करता है, जैसे- शासितों की सहमति, ईश्वरीय अधिकार, और बल।
  • अधिकारिता बनाम शक्ति: राजनीतिक सिद्धांत अधिकारिता (शासन करने का अधिकार) और शक्ति (नियमों को लागू करने की क्षमता) के बीच संबंध का विश्लेषण करता है, यह खोजता है कि कब अधिकारिता को स्वीकार किया जाता है या चुनौती दी जाती है।
  • वैध अधिकारिता के सिद्धांत: राजनीतिक विचारक जैसे- मैक्स वेबर ने वैध अधिकारिता के प्रकारों की खोज की है, जैसे- पारंपरिक, करिश्माई, और कानूनी-युक्तिकृत अधिकारिता।

प्रश्न 19:
राजनीतिक सिद्धांत सामाजिक अनुबंध सिद्धांत के मुद्दे को कैसे संबोधित करता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत सामाजिक अनुबंध सिद्धांत को इस प्रकार संबोधित करता है:

  • सरकार की उत्पत्ति: सामाजिक अनुबंध सिद्धांत यह जांचता है कि सरकारें कैसे व्यक्तियों के बीच एक निहित या स्पष्ट अनुबंध के माध्यम से बनाई जाती हैं। प्रसिद्ध सिद्धांतकार—हॉब्स, लॉक, और रूसो—इस अनुबंध के दृष्टिकोण में भिन्न थे।
  • प्राकृतिक अवस्था: सामाजिक अनुबंध विचारक प्राकृतिक अवस्था की कल्पना करते हैं, जहाँ कोई सरकार या कानून नहीं होते। वे यह जांचते हैं कि व्यक्ति, अराजकता से बचने या अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए, सरकार बनाने के लिए सहमति क्यों देते हैं।
  • सरकार की वैधता: यह सिद्धांत सरकारों की वैधता पर ध्यान केंद्रित करता है, यह तर्क करते हुए कि सरकारें केवल तभी वैध होती हैं जब उन्हें शासितों की सहमति प्राप्त होती है।
  • सामाजिक न्याय: सामाजिक अनुबंध सिद्धांत अक्सर न्याय, समानता, और व्यक्तिगत अधिकारों के मुद्दों को संबोधित करता है, और रूसो जैसे विचारक सामान्य इच्छा और सामूहिक भलाई पर जोर देते हैं।

प्रश्न 20:
राजनीतिक सिद्धांत क्रांति की प्रकृति को कैसे समझता है?

उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांत क्रांति की प्रकृति को इस प्रकार समझता है:

  • क्रांतिकारी परिवर्तन: राजनीतिक सिद्धांतकार क्रांति को राजनीतिक संरचनाओं में एक व्यापक और गहरे परिवर्तन के रूप में देखते हैं, जो प्रायः जनविद्रोहों या उत्पीड़ित सरकारों के खिलाफ जन आंदोलन के परिणामस्वरूप होती है।
  • क्रांति के कारण: यह कारणों की पहचान करता है जैसे- आर्थिक असमानता, राजनीतिक उत्पीड़न, और सामाजिक अन्याय जो क्रांति के सामान्य कारण होते हैं।
  • क्रांति के सिद्धांत: विचारक जैसे- कार्ल मार्क्स ने यह तर्क किया कि क्रांति वर्ग संघर्ष का अपरिहार्य परिणाम है, जबकि अन्य, जैसे- हन्ना अरेंड्ट, सामाजिक गतिशीलताओं और सामूहिक क्रियावली की भूमिका पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • समाज पर प्रभाव: राजनीतिक सिद्धांत क्रांति के परिणामों की भी जांच करता है, यह सवाल उठाते हुए कि क्या यह सकारात्मक परिवर्तन लाती है या केवल एक प्रकार की तानाशाही को दूसरे से बदल देती है।

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