धारा 1: चुनाव और प्रतिनिधित्व का परिचय
चुनाव लोकतंत्र में नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनने और अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने का मुख्य तरीका हैं। प्रतिनिधि लोकतंत्र में लोग सरकार में अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए व्यक्तियों को चुनते हैं। प्रतिनिधित्व नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर देता है, बिना कि उन्हें हर निर्णय में सीधे तौर पर शामिल होना पड़े। चुनाव यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि सरकार लोगों की पसंद का प्रतिबिंब हो और यह उत्तरदायित्व का एक तंत्र प्रदान करती है। मतदान का अधिकार और चुनावों में खड़ा होने का अधिकार लोकतांत्रिक प्रणाली में बुनियादी हैं, और चुनावों का आयोजन नियमित अंतराल पर सरकार के जनादेश को नवीनीकरण करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 1: लोकतंत्र में चुनावों की क्या भूमिका है?
उत्तर 1: चुनाव नागरिकों को उनके प्रतिनिधियों को चुनने, अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने और सरकार को उत्तरदायी बनाने का अवसर देते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सरकार जनता की इच्छाओं का प्रतिबिंब हो।
प्रश्न 2: लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व से क्या आशय है?
उत्तर 2: प्रतिनिधित्व का मतलब है कि नागरिक व्यक्तियों को सरकार में उनके behalf पर निर्णय लेने के लिए चुनते हैं, इस प्रकार यह सुनिश्चित करते हैं कि लोगों के हितों को शासन में ध्यान में रखा जाए।
प्रश्न 3: लोकतंत्र में चुनावों का उत्तरदायित्व के लिए क्या महत्व है?
उत्तर 3: चुनाव उत्तरदायित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये नागरिकों को यह अवसर प्रदान करते हैं कि वे उन प्रतिनिधियों या सरकारों को वोट से हटा सकें जो अच्छे से काम नहीं करते या जनता की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहते हैं।
प्रश्न 4: चुनाव कैसे यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकार लोगों की पसंद का प्रतिबिंब हो?
उत्तर 4: चुनाव नागरिकों को उनके नेताओं को चुनने और नीतियों पर निर्णय लेने का अवसर प्रदान करते हैं, इस प्रकार यह सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता में जो लोग हैं, उन्हें जनमत के आधार पर चुना गया हो।
प्रश्न 5: मतदान का अधिकार लोकतंत्र में क्यों बुनियादी माना जाता है?
उत्तर 5: मतदान का अधिकार बुनियादी इसलिए है क्योंकि यह नागरिकों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है, इस प्रकार यह सुनिश्चित करता है कि उनकी राय और पसंदों का प्रतिनिधित्व सरकार के निर्णयों में हो।
धारा 2: चुनावों के प्रकार और निर्वाचन प्रणाली
भारत में चुनाव विभिन्न सरकारी स्तरों के लिए होते हैं, जिसमें केंद्रीय सरकार, राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव संसद के लिए होते हैं, जिसमें लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्य सभा) शामिल हैं। राज्य स्तर पर राज्य विधानसभाओं और परिषदों के लिए चुनाव होते हैं। भारत एक मिश्रित निर्वाचन प्रणाली का पालन करता है जिसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के चुनाव शामिल हैं। लोकसभा के सदस्य चुनने के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं, जबकि भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से चुनावी कॉलेज द्वारा किया जाता है। यह प्रणाली व्यापक भागीदारी को सुनिश्चित करती है और विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व को संतुलित करती है।
प्रश्न 1: भारत में चुनावों के विभिन्न स्तर कौन-कौन से हैं?
उत्तर 1: भारत में चुनाव केंद्रीय सरकार (संसद), राज्य सरकारें (राज्य विधानसभाएँ और परिषदें) और स्थानीय निकायों के लिए होते हैं।
प्रश्न 2: भारतीय संसद की संरचना क्या है?
उत्तर 2: भारतीय संसद दो सदनों में बांटी गई है: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्य सभा), जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से चुने गए सदस्य होते हैं।
प्रश्न 3: भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनावों में क्या अंतर है?
उत्तर 3: प्रत्यक्ष चुनावों में नागरिक अपने प्रतिनिधियों को सीधे वोट करते हैं (जैसे लोकसभा चुनाव), जबकि अप्रत्यक्ष चुनावों में राष्ट्रपति जैसे प्रतिनिधि चुनावी कॉलेज द्वारा चुने जाते हैं।
प्रश्न 4: भारत की निर्वाचन प्रणाली व्यापक भागीदारी को कैसे सुनिश्चित करती है?
उत्तर 4: निर्वाचन प्रणाली व्यापक भागीदारी को इस प्रकार सुनिश्चित करती है कि नागरिकों को विभिन्न सरकारी स्तरों पर अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अवसर मिलता है, और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनावों का मिश्रण सुनिश्चित करता है कि विभिन्न क्षेत्रों का संतुलित प्रतिनिधित्व हो।
प्रश्न 5: भारत के राष्ट्रपति का अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव क्यों होता है?
उत्तर 5: भारत के राष्ट्रपति का अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव इसलिए होता है ताकि चुनाव एक सामूहिक निर्णय हो जो राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा लिया जाए, इस प्रकार शक्ति के संतुलन को बनाए रखा जा सके।
धारा 3: निर्वाचन प्रतिनिधित्व और चुनौतियाँ
भारत में निर्वाचन प्रतिनिधित्व का आधार “एक व्यक्ति, एक वोट” सिद्धांत पर है, लेकिन विधानमंडल में सीटों का वितरण हमेशा जनसंख्या के आकार के हिसाब से समान नहीं होता, जिससे कम या अधिक प्रतिनिधित्व की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। लोकसभा चुनावों में पहले-पास-द-पोस्ट (FPTP) प्रणाली अक्सर ऐसी स्थिति पैदा करती है, जिसमें एक पार्टी सीटों का बहुमत जीत सकती है, जबकि वोटों का बहुमत नहीं प्राप्त कर पाती है। इससे कुछ राजनीतिक पार्टियों का प्रभुत्व होता है और छोटे दलों का हाशिए पर चले जाने का खतरा होता है। इसके अतिरिक्त, जाति, धर्म और पैसे की ताकत जैसी समस्याएँ चुनावों को प्रभावित करती हैं, जो निर्वाचन प्रक्रिया की निष्पक्षता और समावेशिता को कमजोर करती हैं।
प्रश्न 1: निर्वाचन प्रतिनिधित्व में “एक व्यक्ति, एक वोट” का क्या मतलब है?
उत्तर 1: “एक व्यक्ति, एक वोट” का मतलब है कि प्रत्येक योग्य नागरिक को वोट देने का समान अधिकार होता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रत्येक व्यक्ति का वोट चुनाव में समान वजन रखता है।
प्रश्न 2: भारतीय निर्वाचन प्रणाली में सीटों के वितरण की चुनौती क्या है?
उत्तर 2: चुनौती यह है कि सीटों का वितरण समान रूप से नहीं होता, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों को आबादी के अनुसार सीटें नहीं मिलतीं, जिससे कम या अधिक प्रतिनिधित्व की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 3: भारत में पहले-पास-द-पोस्ट (FPTP) प्रणाली चुनावी परिणामों को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर 3: FPTP प्रणाली से ऐसा हो सकता है कि एक पार्टी सीटों का बहुमत जीतने में सफल हो जाए, जबकि उसे वोटों का बहुमत नहीं मिलता, जिससे मतदाता की वास्तविक पसंद का सही प्रतिनिधित्व नहीं होता।
प्रश्न 4: भारत में चुनावों को प्रभावित करने वाले कुछ कारक क्या हैं?
उत्तर 4: भारत में चुनावों को जाति, धर्म और पैसे की ताकत जैसे कारक प्रभावित करते हैं, जो चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और समावेशिता को कमजोर करते हैं, और परिणामस्वरूप परिणाम पक्षपाती हो सकते हैं।
प्रश्न 5: भारत में निर्वाचन प्रतिनिधित्व कभी-कभी क्यों अनुचित माना जाता है?
उत्तर 5: भारत में निर्वाचन प्रतिनिधित्व कभी-कभी अनुचित माना जाता है क्योंकि कुछ क्षेत्रों का प्रभाव ज्यादा होता है, बड़ी पार्टियों का प्रभुत्व होता है और जाति और पैसे का प्रभाव मतदाता के व्यवहार को प्रभावित करता है, जो परिणामों को विकृत कर देता है।
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