“बचपन” – सारांश
लेखिका का परिचय और जीवनकाल:
इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन की यादों को साझा किया है। उनका जन्म पिछली शताब्दी में हुआ था, और अब उनकी उम्र दादी या नानी जितनी होगी। लेखिका के बचपन से लेकर अब तक उनके पहनावे में बहुत परिवर्तन आया है।
पहने जाने वाले कपड़े:
बचपन में लेखिका रंग-बिरंगे कपड़े पहनती थीं, जैसे नीला, जामुनी, ग्रे, काला, और चॉकलेटी। वे फ्रॉक, निकर-वॉकर, स्कर्ट, लहंगे, और गरारे पहनती थीं, जबकि अब वे चूड़ीदार और घेरदार कुर्ते पहनती हैं। उनके कुछ पुराने फ्रॉक आज भी उनकी यादों में ताजा हैं।
मौजे और जूते:
लेखिका को अपने मौजे और स्टॉकिंग भी याद हैं। उन्हें अपने मौजे खुद धोने पड़ते थे और हर रविवार को अपने जूतों पर पॉलिश करनी होती थी। नए जूते पहनने से पैरों में छाले पड़ जाते थे, इसलिए उन्हें पुराने जूते पहनना ज्यादा पसंद था। आज भी उन्हें बूट पॉलिश करना अच्छा लगता है।
स्वास्थ्य संबंधी आदतें:
लेखिका को अपनी सेहत के लिए हर शनिवार को ऑलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना पड़ता था, जो उस समय की एक सामान्य आदत थी।
संविधानों में परिवर्तन:
उन दिनों रेडियो और टेलीविज़न नहीं थे; केवल कुछ घरों में ग्रामोफ़ोन थे। लेखिका ने बताया कि पहले और अब के खाने में भी बड़ा अंतर आया है। पहले की कुल्फी अब आइसक्रीम बन गई है, कचौड़ी-समोसा पैटीज़ में बदल गए हैं, और शरबत कोक और पेप्सी में बदल गया है।
चॉकलेट और स्नैक्स:
लेखिका के घर के पास एक मॉल था, जहाँ उन्हें हफ्ते में एक बार चॉकलेट खरीदने की छूट थी। उनके पास सबसे ज्यादा चॉकलेट होती थी। उन्हें चने ज़ोर गरम और अनारदाने का चूर्ण बहुत पसंद था, और उन्होंने पहले के चने ज़ोर गरम और अब वाले में कोई अंतर नहीं पाया।
शिमला में बचपन की यादें:
लेखिका ने अपने बचपन में शिमला रिज पर बहुत मज़े किए। घोड़ों की सवारी करना और सूर्यास्त के समय पहाड़ों का मनोहारी दृश्य देखना उनके लिए विशेष था। चर्च की घंटियाँ सुनकर उन्हें लगता था कि प्रभु कुछ कह रहे हैं। शिमला-कालका ट्रेन का मॉडल देखने की भी यादें हैं।
चश्मा लगाना:
लेखिका ने अपने पहले चश्मे का अनुभव भी साझा किया। उन्हें शुरू में चश्मा लगाना अटपटा लगा, लेकिन डॉक्टर ने आश्वासन दिया कि कुछ दिनों में यह उतर जाएगा। हालांकि, चश्मा आज तक नहीं उतरा। इसका मुख्य कारण यह था कि उन्होंने दिन की रोशनी में पढ़ने के बजाय रात में टेबल लैंप के सामने पढ़ाई की। पहले चश्मा लगाने पर उनके भाई उन्हें चिढ़ाते थे कि उनकी सूरत लंगूर जैसी लगती है। धीरे-धीरे चश्मा उनकी पहचान बन गया।
निष्कर्ष
इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन के अनुभवों को जीवंत तरीके से प्रस्तुत किया है। उनके कपड़े, आदतें, और खास यादें सभी मिलकर एक ऐसा चित्र प्रस्तुत करते हैं, जो न केवल उनके बचपन की कहानियाँ हैं, बल्कि एक युग के बदलाव का भी संकेत देते हैं। यह पाठ पाठकों को उनके अपने बचपन की यादों में ले जाता है और यह सिखाता है कि हर पल और अनुभव कितना कीमती होता है।
शब्दार्थ –
- सयाना – होशियार, बुद्धिमान
- शताब्दी – एक सौ साल का समय
- फ्रील – झालर, कपड़ों या अन्य वस्त्रों की सजावट के लिए उपयोग होने वाला लटकता हिस्सा
- चलन – प्रचलन में, जो आम तौर पर प्रयोग में होता है
- केस्टर ऑयल – अरंडी का तेल, जिसका उपयोग औषधीय और पाक कला में होता है
- ऑलिव ऑयल – जैतून का तेल, जो विशेषकर खाना बनाने और सलाद में उपयोग किया जाता है
- खुराक – निश्चित मात्रा, खासकर दवा या भोजन की
- मितली – उल्टियाँ, या जी मिचलाना
- मुँह में पानी भर आना – लालच आना, किसी चीज़ की इच्छा होना
- निरा – केवल, सिर्फ
- कमतर – कम अच्छा, गुणवत्ता में निम्न
- खीजना – क्रुद्ध होना, गुस्सा आना
- सुभीते – सुविधाजनक, आरामदायक
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