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CBSE Class 8 English Chapter 5 The Summit Within – Summary

Summary of “The Summit Within”

Author: Major H.P.S. Ahluwalia

Summary: “The Summit Within” is the personal experience of Major H.P.S. Ahluwalia, who was part of India’s first successful Mount Everest expedition in 1965. In this chapter, he shares his emotions and thoughts after reaching the top of Mount Everest.

When Ahluwalia stood at the peak, he felt many emotions—joy, humility, tiredness, and a little sadness. The joy came from accomplishing something so big, and the sadness came from realizing that there were no higher peaks to climb. However, he was deeply thankful to God for the experience.

He explains that climbing a mountain requires three key qualities: endurance, persistence, and willpower. These same qualities are necessary to overcome life’s challenges.

He also talks about his deep love for mountains and how their challenges attract him. Climbing Mount Everest, according to him, was not only a physical achievement but also an emotional and spiritual journey. It was a tough struggle against rock and ice, but looking down from the peak made all the effort worthwhile.

Ahluwalia believes that just like the physical peak of Everest, we all have an inner peak to climb, which is the summit of the mind. This internal climb is important because it also changes us and helps us grow as individuals. He even says that this internal summit can be more difficult and higher than Everest itself.

Another important lesson from the expedition is companionship. Ahluwalia explains how climbers must trust and support each other, sharing a single rope for safety. Climbing alone is nearly impossible, and teamwork is crucial for success.

After reaching the top of Everest, Ahluwalia and his teammates offered their respects to God. Each of them left a religious symbol on the peak as a sign of gratitude. Ahluwalia left a picture of Guru Nanak, Rawat left a picture of Goddess Durga, Phu Dorji left a relic of Lord Buddha, and Edmund Hillary buried a Cross in the snow.

Conclusion:
The story teaches that both physical and internal challenges require strength, endurance, and willpower. With these qualities, we can overcome any obstacle in life, just as Ahluwalia overcame the challenges of climbing Mount Everest.

Important Keywords and Their Meanings:

KeywordMeaning
EnduranceThe ability to keep going despite physical or mental fatigue
PersistenceContinuing steadily despite difficulties
WillpowerStrong determination to do something difficult
SummitThe highest point of a mountain or the highest goal
ExpeditionA journey with a specific purpose, like reaching the peak
CompanionshipThe bond between friends who support each other
Spiritual journeyA deep personal experience related to growth or faith
GratitudeThankfulness or appreciation for something

The Summit Within” का आसान सारांश

लेखक: मेजर एच.पी.एस. अहलूवालिया

सारांश: “The Summit Within” मेजर एच.पी.एस. अहलूवालिया का व्यक्तिगत अनुभव है, जो 1965 में भारत के पहले सफल माउंट एवरेस्ट अभियान का हिस्सा थे। इस अध्याय में, वे माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के बाद अपने भावनाओं और विचारों को साझा करते हैं।

जब अहलूवालिया एवरेस्ट की चोटी पर खड़े थे, तो उन्होंने कई भावनाएं महसूस कीं—खुशी, विनम्रता, थकान, और थोड़ी उदासी। खुशी इस बात की थी कि उन्होंने एक बहुत बड़ा लक्ष्य हासिल कर लिया था, और उदासी इस बात की थी कि अब चढ़ने के लिए कोई ऊंची चोटी नहीं बची थी। फिर भी, वे इस अनुभव के लिए भगवान का गहराई से धन्यवाद कर रहे थे।

वे बताते हैं कि किसी पर्वत को चढ़ने के लिए तीन मुख्य गुणों की आवश्यकता होती है: सहनशक्ति, दृढ़ता, और इच्छाशक्ति। ये वही गुण जीवन की चुनौतियों को पार करने के लिए भी जरूरी हैं।

वे पहाड़ों के प्रति अपने गहरे प्रेम के बारे में भी बात करते हैं और कैसे उनकी चुनौतियां उन्हें आकर्षित करती हैं। उनके अनुसार, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना सिर्फ एक शारीरिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा भी है। यह चट्टान और बर्फ के खिलाफ एक कठिन संघर्ष था, लेकिन चोटी से नीचे देखने पर उन्हें लगता था कि सारी मेहनत सार्थक थी।

अहलूवालिया का मानना है कि जैसे माउंट एवरेस्ट की भौतिक चोटी है, वैसे ही हम सभी के भीतर एक मानसिक चोटी है जिसे हमें चढ़ना है। यह आंतरिक चढ़ाई भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें बदलती है और व्यक्तिगत रूप से बढ़ने में मदद करती है। वे यह भी कहते हैं कि शायद यह आंतरिक चोटी एवरेस्ट से भी ऊंची और कठिन हो सकती है।

एक और महत्वपूर्ण पाठ जो इस अभियान से मिला, वह है साथी का महत्व। अहलूवालिया बताते हैं कि पर्वतारोहियों को एक-दूसरे पर भरोसा करना पड़ता है और एक ही रस्सी से सुरक्षा के लिए बंधा होता है। अकेले चढ़ाई करना लगभग असंभव होता है, और सफलता के लिए टीमवर्क जरूरी है।

एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के बाद, अहलूवालिया और उनके साथियों ने भगवान को श्रद्धांजलि दी। उनमें से हर एक ने चोटी पर एक धार्मिक प्रतीक छोड़ा। अहलूवालिया ने गुरु नानक की एक तस्वीर छोड़ी, रावत ने देवी दुर्गा की तस्वीर छोड़ी, फु डोरजी ने भगवान बुद्ध का एक अवशेष छोड़ा, और एडमंड हिलेरी ने बर्फ में एक क्रॉस दबाया।

निष्कर्ष:
कहानी यह सिखाती है कि शारीरिक और मानसिक दोनों चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें ताकत, सहनशक्ति और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। इन गुणों के साथ, हम जीवन की किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अहलूवालिया ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की चुनौतियों को पार किया।

महत्वपूर्ण शब्द और उनके अर्थ:

शब्दअर्थ
सहनशक्तिशारीरिक या मानसिक थकान के बावजूद आगे बढ़ने की क्षमता
दृढ़ताकठिनाइयों के बावजूद लगातार प्रयास करते रहना
इच्छाशक्तिकठिन काम को करने का दृढ़ संकल्प
चोटीपर्वत का सबसे ऊंचा बिंदु या सबसे ऊंचा लक्ष्य
अभियानकिसी विशेष उद्देश्य के लिए किया गया यात्रा
साथी का महत्वदोस्तों के बीच का बंधन जो एक-दूसरे का समर्थन करते हैं
आध्यात्मिक यात्राव्यक्तिगत विकास या विश्वास से जुड़ा गहरा अनुभव
कृतज्ञताकिसी चीज़ के लिए धन्यवाद या आभार

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