चित्रकूट में भरत – सारांश
यह कथा भरत के चित्रकूट में राम से मिलने और उन्हें वापस लाने की कोशिश का विस्तृत वर्णन करती है। यह न केवल परिवार के बंधन और भाईचारे की गहराई को दर्शाती है, बल्कि यह कर्तव्य, निष्ठा और त्याग की भी महानता को उजागर करती है।
कथा का आरंभ
भरत का ननिहाल में होना:
- भरत केकय राज्य में अपनी ननिहाल में थे, जहाँ वे अपनी मातृभूमि की घटनाओं से अनजान थे। यह स्थिति उन्हें बेचैन करती है।
- एक रात, उन्हें एक भयावह सपना आता है: समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिरा है, और वृक्ष सूख रहे हैं। इस सपने में, एक राक्षसी उनके पिता को खींच रही है, जो कि दशरथ के प्रति उनके गहरे प्रेम और चिंता का प्रतीक है।
अयोध्या से संदेश:
- अयोध्या से घुड़सवार दूत उन्हें सूचित करते हैं कि उन्हें तुरंत लौटने की आवश्यकता है। दूतों के आगमन से भरत की चिंता और बढ़ जाती है।
- केकय के राजा ने भरत को सौ रथों और एक विशाल सेना के साथ विदा किया, जो उनके महत्त्व और स्थिति को दर्शाता है।
अयोध्या में प्रवेश
अयोध्या की स्थिति:
- भरत आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचते हैं और वहाँ की शांति और उजाड़ता देखकर चिंतित होते हैं। उनकी आँखों के सामने एक अद्भुत दृश्य था—पिताजी की मृत्यु के कारण पूरा नगर शोक में डूबा हुआ था।
- जब उन्होंने अपनी माता कैकेयी से पूछा कि क्या हुआ है, तो उन्हें बताया गया कि उनके पिता महाराज दशरथ का देहांत हो गया है।
भरत का विलाप:
- यह सुनकर भरत विलाप करने लगते हैं, उनका दिल टूट जाता है। पिता की मृत्यु से उन्हें अत्यधिक दुख होता है और वे अपने भाई राम के बारे में पूछते हैं।
- कैकेयी उन्हें बताती हैं कि दशरथ ने राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत को राजगद्दी दी है। भरत को यह सुनकर क्रोध आता है और वह माँ को भला-बुरा कहते हैं।
राम के पास जाना
राम की खोज:
- भरत अपने पिता की मृत्यु और भाई के वनवास की स्थिति से बहुत दुखी होते हैं और यह निर्णय लेते हैं कि वे राम के पास जाकर उन्हें मनाएंगे कि वे अयोध्या वापस लौटें।
- भरत ने कहा कि उन्हें राज्य की कोई आवश्यकता नहीं है, वे सिर्फ राम को लाने जाएंगे। इस निर्णय से उनके कर्तव्य और प्रेम का पता चलता है।
कौशल्या के महल की ओर यात्रा:
- भरत कौशल्या के महल की ओर चल पड़ते हैं। वहाँ जाकर उन्होंने सारी बातें बताई, और कौशल्या ने उन्हें माफ कर दिया। यह क्षण भावनात्मक था, जिसमें मातृत्व और पुत्रत्व का गहरा बंधन दिखाया गया।
मंथरा का प्रभाव:
- भरत को पता चलता है कि मंथरा ने कैकेयी को भड़काया था, और वे उसे मारने की इच्छा रखते हैं। लेकिन भरत ने मंथरा को बचा लिया, यह दर्शाता है कि उन्होंने अपने क्रोध को नियंत्रित किया और परिवार की एकता को प्राथमिकता दी।
यात्रा की तैयारी
मुनि वशिष्ठ की सलाह:
- मुनि वशिष्ठ, जो अयोध्या के प्रमुख विद्वान हैं, उन्हें बताते हैं कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। उन्होंने भरत को सलाह दी कि वे राजकाज संभालें।
- लेकिन भरत ने यह स्पष्ट किया कि वे केवल राम को वापस लाने की कोशिश करेंगे, न कि राजगद्दी पर बैठने के लिए।
यात्रा का आरंभ:
- भरत के साथ मुनि वशिष्ठ, सभी माताएँ, मंत्रीगण, सभासद, और नगरवासी चित्रकूट के लिए चल पड़ते हैं। यह यात्रा एक सामूहिक प्रयास है, जो राम के प्रति सभी की निष्ठा और प्रेम को दर्शाती है।
चित्रकूट में भरत का सामना
निषादराज गुह का स्वागत:
- जब भरत शृंगवेरपुर पहुँचते हैं, तो निषादराज गुह को लगता है कि भरत राम पर आक्रमण करने जा रहे हैं। लेकिन जब उन्हें सही स्थिति का पता चलता है, तो वे उनका स्वागत करते हैं।
- गुह की मित्रता और समर्थन ने यात्रा को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। उन्होंने भरत और उनकी सेना को गंगा पार करने में सहायता की।
राम की पर्णकुटी:
- राम और सीता पर्णकुटी में निवास कर रहे हैं। लक्ष्मण पहरा दे रहे हैं। जब लक्ष्मण ने अयोध्या की विराट सेना को देखा, तो उन्होंने राम को बताया कि शायद भरत उन्हें मारने आए हैं।
- राम ने लक्ष्मण को धैर्य रखने के लिए कहा, यह दर्शाता है कि राम हमेशा स्थिति को समझने और शांत रहने का प्रयास करते हैं।
राम से वार्तालाप
भरत का प्रण:
- भरत, शत्रुघ्न के साथ नंगे पाँव चलकर राम के चरणों में गिरकर उन्हें प्रणाम करते हैं। यह क्षण उनके आदर और निष्ठा का प्रतीक है।
- भरत ने राम से अयोध्या लौटने का आग्रह किया, लेकिन राम ने पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने से इंकार कर दिया। यह दर्शाता है कि राम कर्तव्य और निष्ठा के प्रति कितने समर्पित हैं।
खड़ाऊँ का महत्व:
- भरत ने राम से कहा कि वे उनके खड़ाऊँ अपने साथ लेकर जाएंगे और चौदह वर्षों तक उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएंगे। यह उनके अडिग संकल्प का प्रतीक है।
- भरत ने राजसी वस्त्र त्याग दिए और तपस्वी वस्त्र पहनकर नंदीग्राम चले गए, जो उनके त्याग और समर्पण को दर्शाता है।
निष्कर्ष
कथा “चित्रकूट में भरत” हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य, निष्ठा और परिवार के प्रति प्रेम सर्वोपरि होना चाहिए। भरत का त्याग, राम के प्रति उनकी निष्ठा, और लक्ष्मण का समर्थन इस कथा को अद्वितीय बनाते हैं। यह जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों का एक अद्भुत उदाहरण है, जो आज भी प्रेरणा देता है।
शब्दार्थ
- अनभिज्ञ: अनजान।
- मन उचटना: उदास होना।
- तुमुलनाद: बहुत शोर।
- कलरव: पक्षियों का चहचहाना।
- विकलता: बेचैनी।
- अक्षम्य: जिसे क्षमा न किया जा सके।
- ग्लानि: पछतावा।
- उद्यत: तैयार।
- चतुरंगिणी सेना: हाथी, घोड़ों, रथों और पैदल सैनिकों की सेना।
- सुरम्य: सुंदर।
- पर्णकुटी: पत्तों से बनी कुटिया।
- नैसर्गिक: प्राकृतिक।
- विरत: अलग।
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